पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/७५

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दोमो बावन वैष्णवन की वार्ता रेंडा जाग्यो । तब डोकरी ने कह्यो, जो- अब कहा समाचार है ?, तब रेडा ने कही, जो - अव तोसों कहा छिपाऊँ ? श्रीगुसांईजी की कृपा तें श्रीठाकुरजीने दरसन दिये । परि हों आछी भांति दरसन करिन सक्यो । तव डोकरीने कही, जो - रेटा ! तेरो धन्य भाग्य है । जो - श्रीठाकुरजी के दरसन भए । अव चलो श्रीगुसांईजी की सेवा को समय भयो है । तब रेंडा और डोकरी घर में आय महाप्रसाद लिये । तव रेंडा कों सगरी सुधि आछी भांति सों भई । तव डोकरी ने कही, जो- यह माला फूल की आधी मेरे पास है सो तुम कहो तो मैं राखों । और चाहो तो लेओ । कृपा तो तुम्हारे ऊपर भई हैं । तुम्हारे पाछे मोकों मिली है । तव रेंडाने कही, जो -तुम हु राखो। पाठें उत्थापन कौ समय भयो । तव रेंडाने आय श्री- गुसांईजी कों दंडवत् करयो । तव श्रीगुसांईजी पूछे, जो -रेंडा कहा समाचार है ? तव रेडाने सब प्रकार श्रीगुसांईजीके आगे कह्यो । जो मोको दरसन होत मूर्छ आई । सो मैं गिरयो । पाठें जाग्यो तब मैं अपने गरे में फूल की माला देखी । तव श्रीगुसांईजी यह आज्ञा किये, जो- भगवद् सेवा करि कै अज हू भगवद् धर्म दृढ नाहीं भयो । तातें दरसन मात्र ही भयो । और यह माला अपने कंठ की दै कै पधारे हैं। तब रेंडाने श्रीगुसांईजी सों विनती करी, जो-महाराज ! भगवद् धर्म दृढ़ होई सो प्रकार कृपा करि कहिए । ताही प्रकार मैं करों । तव श्रीगुसांईजी कहें, जो-कहूंगो, तू चिंता मति करे । ऐसें आज्ञा करि आप मंदिर में पधारि, श्रीनवनीतप्रियजी को उत्थापन तें सेन पर्यंत की सेवा सों पहोंचि, अनोसर करवाय पाछे बैठक में -