पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/८५

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। ७६ दोसी बावन वैष्णवन को वार्ता गाम में डेरा किये । सो तलाव पर डेरा भए । तंत्र गाम के सब वैष्णव श्रीगुसां- ईजी के दरसन को जान लागे तब इन दोऊ स्त्री-पुरूप ने वैष्णवन तें पूछयो, जो- आज कहा है ? जो तुम सब इकठे व्है तलाव की ओर जात हो । तब उन वैष्णवन कहे, जो-आज श्रीगुसांईजी पधारे है। सो उनके डेरा तलाव पर भए है। तातें हम सब उन के दरसन को जात हैं । तुम्हारे चलनो होइ तो चलो। ये श्री- गुसांईजी साक्षात् ईश्वर हैं। तब तो दोऊ स्त्री-पुरुष कहन लागे, जो-हम हूं चलेंगे। ईश्वर के दरसन करेंगे। तातें तुम हम को अपने संग ले चलो। पाठे दोऊ स्त्री-पुरुप उन वैष्णवन के संग श्रीगुसांईजी के दरसन को आए । सो दर करत ही थकित है रहे । सो श्रीगुसांईजी आप इन दोऊन को अलौकिक दरसन दिये । तब तो ये दोऊ स्त्री-पुरुप विनती किये, जो - महाराज ! हम आप के सरनि आए हैं । तातें कृपा करि हम को सरनि लीजिये। आज हमारे बड़े भाग्य हैं, जो - आपके दरसन पाए । तब श्रीगुसांईजी दोऊन को आज्ञा किये, जो-तुम दैवी जीव हो । तातें स्नान करि हमारे पास आउ । हम तुम का सरनि लेइंगे। तब दोऊ स्त्री- पुरुष तलाव में स्नान करि अपरस ही में आए । तब श्रीगुसांइजी दोऊन कों नाम-निवेदन करवाए । ता पाछे आप कृपा करि दोऊन कों आज्ञा किये, जो- अब तुम सेवा करो। तुम को हम भगवत्सेवा पधराय देत हैं । तिनकी तुम भाव- प्रीती सहित सेवा करियो । सो श्रीगुसांईजी आप कृपा करि दोऊन को श्री- मदनमोहनजी को स्वरूप स्वामिनीजी सहित पधराय दिये । पाछे आज्ञा किये, जो- इनकी नीकी भांति सों सेवा करियो। और आए गए वैष्णवन की टहल प्रीति सों करियो। और उन को संग करियो। पाछे श्रीगुसांईजी दोऊन कों सेवा की रीति सिखाए । ता पाछे आप द्वारकाजी पधारे । ! वार्ता प्रसग- 3 सो वे स्त्री-पुरुष श्रीठाकुरजी की सेवा नीकी भांति सों करते । सो वह पुरुष हतो सो तो लकड़ी ल्याय के नित्य बेचतो। सो वाके पैसा आवते तिनकी सामग्री ल्यावतो। और वामें तें अधेला पैसा नित्य बचाय राखतो। और वाकी स्त्री रसोई की सामग्री सिद्ध करती। और वह पुरुष न्हाय कै श्रीठाकुरजी को सेवा-सिंगार करतो। और वह स्त्री राजभोग