पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/९४

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एक ब्रामण पंडित, जाने जनेऊ तोरि बुहारी यांधी तातें तुम्हारो कछू भरोसो परत नाहीं । तव श्रीगोवर्द्धननाथजी कहें, जो - मैं तोसों सत्य कहत हो। सो सत्य यह मेरो वचन है। यामें संदेह नाहीं । ऐसे कहिं के ता पाछे कह्यो, जो-तु अव चिंता करे मति । आज पाठे तोकों नित्य दरसन देउंगो। ता पाछे श्रीगोवर्द्धननाथजी आप पधारे । सो दोई समय इहां जब श्रीगुसांईजी अनोसर करते तव उहां पधारते। भावप्रकाश-या वार्ता को अभियाय यह हैं, जो.- ठाकुर अपने जन को ताप सहि सकत नाहीं । तासो जो कोऊ भक्त विरह ताप करि उनको भजत है, तिन के वे आधीन व्है रहत है । सदा सर्वदा निकट रहत हैं । सो यह पुष्टिमार्ग विरह आतुरता को है ताते या मार्ग में श्रीगोवर्द्धननाथजी सदा सानिध्य रहत हैं । सो अजवकुंवरि को ताप जानि श्रीगोवर्द्धननाथजी ब्रज छोरि के मेवाड़. पधारे । सो जबलों अजयकुंवरि की (आधिदैविक प्रकार सों) स्थिति हैं । तहां ताई श्रीगोबर्द्धननायजी मेवाड में विराजेंगे। सो वह अजवकुंवरि श्रीगुसांईजी की ऐसी परम कृपापात्र भगवदीय हती। तातें इनकी वार्ता कहां ताई कहिए। वार्ता ॥९॥ TA - भय श्रीगुसांईजी को तेषफ एक ब्रामन पडित, गुप्तरात को, माने जनेक तोरि युद्वारी यांधी, तिनको वार्ता को भाय फहत हैं भावप्रकाश-ये तामस भक्त हैं, लीला में इन को नाम 'आतुरी' है। इन को श्रीठाकुरजी की सेवा में चोहोत आरति रहति हैं। रात्रि-दिन सेना विनु चेन परत नाहीं । और कछु जानत नाहीं । ये 'मुभगा' में प्रगटर्टी है तातें इनके भावरूप हैं। ये गुजरात में एक गाम में वामन के जन्म्यो । मो बालपन में नकों एक कर्ममार्गीय पंडित को मंग भयो। सो कर्ममार्ग के ग्रन्थ बोहोत पढयो । मो कर्मकांड करन लाग्यो। पाठे वरस पच्चीस को भयो नब इन को पिता मन्यो । सो घर में हकलो रहे । व्याह भयो नाहीं । सो एक समै श्रीगुसांईजी द्वारिकाजी पधारत है । सो मार्ग में यह बालन को गाम आयो। नहां टेग किये। मो यह