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पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/९५

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८४ दोसौ घावन वैष्णनन की वार्ता ब्राह्मन को श्रीगुसांईजी के दरसन भए। तब यह ब्राह्मन जान्यो, जो - ये कोई पंडित हैं। तातें इन सों सास्त्र-चर्चा करिए तो आछौ। पाछे यह ब्राह्मन श्रीगुसां- ईजी पास चर्चा करन आयो। तब या ब्राह्मन ने श्रीगुसांईजी पास आई नमस्कार करि यह पूछयो, जो-महाराज! कमार्ग वड़ो के ज्ञानमार्ग बड़ो? तब श्रीगुसां- ईजी कहे, जो - जाकों जो रुचे ताके भाये वह मार्ग बड़ो। जा मारग पर विश्वास आवें सोई बड़ो । परि वैसे तो बड़ो भक्तिमार्ग है। जामें जीव कृतास्थ होंई। और ज्ञान मार्ग कर्ममार्ग तो या काल में पड़ी कठिनता सों होत हैं। तातें कष्ट साध्य हैं। तब या पंडित ब्राह्मन कह्यो, जो-महाराज ! भक्तिमार्ग में कहा कर्म नाहीं हैं ? तब श्रीगुसांईजी आज्ञा किये, जो-भक्तिमार्ग में कर्म और ज्ञान दोऊ हैं । परि वे दोउ भगवद् संबंधी हैं। भक्तिमार्ग में जो कर्म किये जात हैं वे सब निष्काम भाव सों भक्ति संयुक्त होत हैं । सो वे भक्ति के अंग रूप हैं । प्रेमलक्षना भक्ति को बढावनहारे हैं। और कर्ममार्ग में स्वर्गादिक की कामना करि कर्म किये जात हैं। तातें उन में निष्काम भाव रहत नाहीं। और बडे कष्ट सों होत हैं। सो या काल में काहू तें आछो भांति वनत नाहीं । सोऊ चित्त प्रसन्न रहत नाहीं। तातें कलेस को देनहारे हैं । तब यह पंडित ब्राह्मन कह्यो, जो- महाराज ! भक्ति के कर्म कौन प्रकार किये जात हैं ? तव श्रीगुसांईजी आप आज्ञा किये, जो-ब्राह्मन सुनि ! भक्तिमार्ग में एक कृष्ण ही कौ सरन-आश्रय मुख्य है। सो 'गीताजी' में भगवान श्रीमुख सों सरन की महिमा कहि हैं । तातें भक्तिमार्ग में या सरनि करि जीव प्रवृत्त होत है । तब वह जीव देहसंबंधी लौकिक वैदिक सव कर्म-धर्म एक भगवानही कों समर्पन करि निष्काम भाव सों उनकी सेवा करन हैं। या प्रकार निष्काम भाव सों कृष्णार्पन किये कर्म ब्रह्म रूप होंई, भक्ति को उत्पन्न करत हैं। ताकरि जीव कृतारथ होत है। ऐसो यह भक्तिमार्ग हैं। यह सुनि के पंडित ब्राह्मन ने श्रीगुसांईजी सों विनती कीनी, जो- महाराज ! आज तांई तो हों कर्ममार्ग में पचि मरयो ! परि कछु प्राप्ति भई नाहीं । तातें अब कृपा करि मोकों भक्तिमार्ग में अंगीकार कीजिए । तब श्रीगुसांईजी वा ब्राह्मन सों कहे, जो-तू स्नान करि आऊ। हम तोको नाम देंगे। पाछे तू काल्हि ब्रत करियो। तब तोको निवेदन करावेंगे। सो वह ब्राह्मन स्नान करि आयो। तव श्रीगुसांईजी आप वाको नाम सुनायो । पार्छ वह ब्राह्मन अपने घर गयो । दूसरे दिन एक व्रत कियो। ता पाछे स्नान करि अपरसहो में श्रीगुसांईजी के पास आयो । तब श्रीगुसांईजी आप कृपा करि वाकों निवेदन कराये । तब यह ब्राह्मन