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पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१०६

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पं० पसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम ९१ चर्द्धन के पिता की मृत्यु पर विलाप का वर्णन है। यदि उचित समझिए तो विक्रमा० चर्चा में इसका भी उल्लेख कर दीजिए। .. पं० जी! मैं कुछ संस्कृत, मामूली हिंदी और उर्दू और थोड़ी सी फारसी के अतिरिक्त और कोई भाषा नहीं जानता, इसलिए अफसोस है कि मराठी की उन पुस्तकों से जिनका उल्लेख आपने पत्र में किया है लाभ नहीं उठा सकता। ___ यदि आप अनुग्रहपूर्वक किसी समय हस्तलिखित तरुणोपदेश का साक्षात्कार करा दें तो मैं अपने को अति अनुगृहीत समझू। (यदि आप ऐसा करने में कुछ हानि न समझें तो)। शिक्षासरोज और रीडर्स की बात ने मुझे सन्देह में डाल दिया। तो क्या छओं भाग शिक्षा सरोज, और वे दोनों रीडर्स ये दोनों ही पुस्तकें विक्रम के लिए इंडियन प्रेस में उपस्थित नहीं हैं ? यदि कोई उन्हें लेना चाहे तो कहाँ से ले? क्या आपकी खास सिफारिश से भी शिक्षा सरोज' और रीडर्स की एक एक प्रति इंडियन प्रेस से नहीं मिल सकती? यदि वे किसी प्रकार मिल सकें तो उनके लिए मैं आपको अवश्य कष्ट दूंगा कि उक्त पुस्तकें मुझे इंडियन प्रेस से दिलवावें। मुझे वे बड़ी ही पसन्द आई हैं। चाहे उनका प्रचार हो वा न हो। मैं अपनी सन्तान को उनके द्वारा ही हिन्दी सिखलाना चाहता हूँ। यदि इंडियन प्रेस हिम्मत करके उनकी कुछ कापियां छाप डाले तो बहुत से लोग उन्हें खरीदें और लाभ उठावें । अविवेकी गवर्नमेंट के मन- जूर न करने से उनकी कीमत कम नहीं हो गई। वे तो बड़ी काम की किताबें हैं। उनका प्रचार तो अवश्य होना चाहिए। कृपापात्र पद्मसिंह यह पत्र लिख चुकने पर मुझे ठाकुर शिवरत्नसिंह जी मिले। वे कहते हैं कि 'शिक्षण मीमांसा' अब शायद नहीं मिलता। इसलिए पं० जी उसे ही अपने पास रहने दें। यदि मिलता हो तो भी न मंगावें । ठाकुर साहब यह भी कहते हैं कि 'आत्म विद्या' और 'ज्योतिविलास' भी हमारे पास हैं। यदि हमें पहले से मालूम हो जाता तो हम उन्हें भेज देते। वे यह भी कहते हैं कि पण्डित जी मराठी भाषा की कोई पुस्तक जब मंगाना चाहै तब पहले हमसे पूछ लिया करें। हमारे पास मराठी की प्रायः सब पुस्तकें हैं। उनके लिए दाम खर्चने की जरूरत नहीं। वे कहते हैं कि 'ज्योतिर्विदा' की जोड़ की एक दूसरी पुस्तक 'अन्तरीक्षातील चमत्कार' हमारे पास है। इन दोनों पुस्तकों के आधार पर यदि कोई पुस्तक लिखी जाय तो अच्छा