९२ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र हो। संसार सुख' और 'जीवित कर्त्तव्य' नामक दो पुस्तकों का अनुवाद ठाकुर साहब दाम देकर कराना चाहते हैं, क्या आपके पास इसके लिए समय है? ठाकुर साहब आपको 'नमस्ते' भी कहते हैं। पद्मसिंह (११) ओम् जालन्धर शहर १५-१०-०५ श्रीमत्सु सादरं प्रणामाः कृपापत्र मिला। आशा है अब श्रीमान् की तबीयत अच्छी हो गई होगी। अनुग्रहपूर्वक वह श्रृंगार रस का नवनीत अवश्य चखाइए। उसे देखकर आपसे विरक्ति नहीं होगी। किंतु और अत्यधिक अनुरक्ति हो जायगी। आपसे और विरक्ति? और फिर मुझे? शिव शिव। - यद्यपि सभी रस अपने अपने मौके पर मेरे चित्त को अधिकृत कर लेते हैं। परन्तु उनमें से श्रृंगार और करुणा ये दो मुझे अधिक प्रिय हैं। 'तरुणोपदेश' में अबके सा भाषा लालित्य चाहे न हो, कुछ त्रुटियां भी भले ही रह गई हों, परन्तु वह कई कारणों से द्रष्टव्य है। आप उसे वैसा ही रहने दीजिए जैसा कि लिखा गया है। कदाचित् कोई महाशय आपका जीवनचरित संकलन करें तो उन्हें भाषा के तारतम्य दिखलाने के समय उससे कुछ सहायता मिले। उर्दू और फारसी के सुप्रसिद्ध कवि 'अमीरखुसरों ने अपनी कविता को तीन भागों में विभक्त किया है, अर्थात् एक दीवान में बचपन की दूसरे में जवानी की और तीसरे में बुढ़ापे की कविता का सन्निवेश किया है। जिससे पढ़नेवाले, कविता की क्रमशः उन्नति के विषय में अपनी राय कायम कर सके। यदि हिन्दी भाषा जिन्दा रही तो एक समय आएगा और जरूर आएगा जबकि विद्वान् लोग आपकी कविता और आपके जीवन पर निबन्ध लिखेंगे। परन्तु उनके लिए कुछ सामग्री पहले से ही प्रस्तुत होनी चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि वे लोग भी आपको वैसा ही उपालम्भ दें जैसा कि आप संस्कृत के प्राचीन कवियों को आत्मविषयक परिचय न देने के विषय में दिया करते हैं। इसलिए आपसे सानुरोध प्रार्थना है कि निज चरित विषयक कुछ नोट लिखते जाइए जिससे भावी लेखकों को भटकना न पड़े।
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