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पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१०८

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पं० पासिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम ठाकुर शिवरत्नसिंह वर्मा विदर्भ देशान्तर्गत पातूर नामक स्थान के निवासी है। यहां कई साल से अपनी पत्नी, विमाता और एक मात्र अपत्य पुत्री के साथ रहते हैं। ये सबके सब कन्या विद्यालय में आनरेरी काम करते हैं। आर्यसमाज से उनका सम्बन्ध है। स्वतन्त्र प्रकृति के मनुष्य हैं। अभी दो मास बीते अपनी पुत्री का विवाह उन्होंने एक काश्मीरी ग्रेजुएट ह्मबाण से किया है। कुछ जायदाद और रुपया पास है। उससे निर्वाह करते हैं। मराठी के अच्छे अच्छे पुस्तकों का इनके पास अच्छा संग्रह है। मराठी के कई दैनिक, साप्ताहिक और मासिक पत्र इनके पास आया करते हैं। कुछ दिन हुए. मैंने आपकी पुस्तकें इन्हें दिखलाई थीं। तब से ये आपके भक्त बन गये हैं। सरस्वती के भी ग्राहक हैं। उसे अपनी पुत्री के नाम मंगाते हैं । ला० देवराज की पुस्तकों के ये भी विरुद्ध हैं। चाहते हैं कि इनका खंडन हो तो अच्छा है। ____आपकी रीडर्स के विषय में मैं इंडियन प्रेस से पूछंगा, यदि वहाँ से किसी प्रकार न मिल सकीं तब आपको कष्ट दिया जायगा। मैं प्रयत्न तो करूंगा कि रीडर्स और शिक्षा सरोज की १००-५० कापियां लेनेवाला कोई पैदा हो जाय। परन्तु लोगों की मूर्खता को क्या किया जाय?'- यथा किराती करिकुम्भ जाता मुक्ता परित्यज्य विभतिं गुंजा" वाली बात हो रही है। जैसी गवर्नमेन्ट वैसी ही प्रजा। पट्टियां रावलपिण्डी से अच्छी मिलती हैं। इसलिए वहाँ को ही लिख दिया गया है। दो चार दिन में ठाकुर साहब से वे किताबें लेकर भेज दूंगा। अपना स्वास्थ्य समाचार लिखिए। कृपापात्र पद्मसिंह (१२) ओम् जालन्धर शहर २२-१०-०५ . श्रीमत्सु सादरं प्रणामाः पारसल और कृपापत्र मिला । अनुगृहीत किया। आपके इस अनुपम औदार्य और दयाभाव का धन्यवाद किस प्रकार दिया