पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१४६

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पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १३१ का सार जिस उर्दू रिसाले (आर्य मुसाफिर) में निकला है, वह मैं आपकी सेवा में भेजता हूँ, उसमें 'सरस्वती' के एक लेख का अनुवाद भी छपा है, मैं चाहता हूं कि आपकी रीडिल को पढ़कर उसकी समुचित और स्वतन्त्र आलोचना 'सरस्वती' में करें। अब न सही, जब अवकाश हो। फरवरी का "मखजन" भी भेजता हूँ और सानुरोध प्रार्थना करता हूँ कि इसमें से इतने लेख (अवकाश न होने पर भी) अवश्य पढ़ जाइए :- पत्र के सम्पादक का-“मिस्टर सेटड केहां एक शाम" सज्जाद हैदर (उत्कृष्ट लेखक है) का-"हजरतेदिलकी सवानह उमरी" प्रोफेसर इकबाल की “एक परन्दे की फरयाद" (कविता)। आशा है, इन्हें पढ़कर आप खुश होंगे, इसके अन्त में नोटिसों की फहरिस्त में ३रे, ६ठे, पृष्ठ पर उन दो किताबों का नोटिस भी देखिए। ना०प्र० सभा से आपने इस्तीफा दे दिया, इसे सभा के दुर्भाग्य के सिवा और क्या कहें। हो सके तो "सूनृतवादिनी" का दर्शन हमें भी कराइए।" अनुगत पद्मसिंह ( ३९) ओम् नायकनगला २४-३-०७ श्रीमत्सु प्रणतयः २१-३ का कृपापत्र मिला, आपने मखजन को पढ़ लिया, और उसे पसन्द किया, खुशी की बात है। सूनृतवादिनी को आप रद्दी में बेंच डालते हैं, यह मालूम कर के आश्चर्य हुआ, क्या वह इसी लायक है ? अन्यथा आपकी सहृदयता कब गवारा करती कि वह रद्दी में फेंकी जाय। 'पियूषप्रवाह' कोई अच्छा पत्र है ? कहां से निकलता है ? यदि वह पद्य कहीं निकल गया तो जाने दीजिए। आज दो और श्लोक भेजता हूँ, इन्हें तो दे दीजिए, पहले के निकलने का तो यह समय है, एप्रिल में उसे जरूर निकालिए।