पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम .१३७ हिन्दी या हिन्दी-पत्रों को तुच्छ समझनेवाले तो नहीं है। "बिहारीबिहार" के पते के लिये धन्यवाद । एप्रिल के 'आर्य मुसाफिर' में 'उर्दू का नया रस्मुलखत' 'सरस्वती' से तर्जुमा होकर फिर छपा है, 'सरस्वती' का पूरा पता देने के लिए हम उन्हें लिखेंगे। ला० मुन्शीराम जी के द्वारा हम हरिश्चन्द्र ब्र० से पूछ लें कि उनकी कविता 'सरस्वती' में दें या नहीं, क्योंकि गुरुकुल के ब्रह्मचारी पबलिक से अभी पृथक् रखे जाते हैं। यदि वहां से इजाजत मिल गई, तो अनुवाद कर के भेज दूंगा। यह बात मैं प्रथम पत्र में लिखना भूल गया था। क्षमा कीजिए। ____ एप्रिल का 'मखजन' मैं आज की डाक से भेजता ही हूँ। आशा है 'चिड़े चिड़िया की बात सुनकर आप प्रसन्न होंगे और इस खुशी में, आज्ञाभंगजन्य मेरा अपराध क्षमा कर देंगे। यदि यह लेख पसन्द आया तो मैं इसका अनुवाद भेज दूंगा। हाल की 'सरस्वती' में 'सभा' की 'सभ्यता' पढ़कर दुःख हुआ, कांग्रेस के मौके पर आर० सी० दत्त, मिस्टर तिलक आदि महोदय ना० प्र० सभा के भवन में एकत्र हुए थे, वे भले आदमी सभा की करतूत प्रकाश हो जाने पर अपने दिल में क्या कहेंगे। अस्तु, आपका एक सुन्दर लेख तो पढ़ने को मिला, खण्डन मण्डन में आपका कलम खूब जौहर दिखाता है। 'सूनृतवादिनी' से हमें बेशक प्रेम है, यदि इस साल के बजट में उसके खरीदने की गुंजायश होती तो हम आपसे उसे हर्गिज न मांगते,हमारे पास ७-८ पत्र-पत्रिका आते हैं, इसलिए इस समय उसे नहीं मंगा सकते, आइन्दा साल यदि हम और वह जिन्दा रहे तो जरूर मंगावेंगे। ___ आज एक आत्मीय के प्राइवेट पत्र से यह मालूम करके चित्त बड़ा उद्विग्न और क्षुब्ध हो रहा है कि पंजाब के नेता ला० लाजपतराय जी को अंग्रेजों ने धोखे से पकड़ कर ता०९ की रात्रि में स्पेशल ट्रेन से चुपचाप काले पानी भेज दिया! पद्मसिंह (४४) नायकनगला २५-६-०७ श्री मान्य महोदयेषु प्रणामाः २०-६ का कृपाकार्ड मिला। १५ मई के मेरे दहिने हाथ में एक ततैय्ये (बर्र) ने काटा था, वह हाथ पक आया, महाकष्ट रहा, उसके साथ ही शरीर में अन्यत्र भी
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