पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१५२

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१३८ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र फोड़े फुन्सी हो गये। उस दिन से ही इलाज मामालजे में लगा हुआ हूँ, हाथ में कष्ट होने के कारण पत्र न भेज सका, अभी तक पूरा आराम नहीं हुआ। यह पंक्तियां मुश्किल से लिखीं हैं। 'क्षतक्षारः' के अनुसार कल से एक कान में बहुत तकलीफ है। श्री क० चरित भेजता हूँ, कुछ नोट करने के लिए रख छोड़ा था, पर आधि- व्याधि ने फुरसत नहीं दी। देखिए अच्छे हो गये तो फिर पत्र व्यवहार जारी होगा, अब के बुरे फंसे हैं। दयनीय पद्मसिंह नायकनगला २३-९-०७ श्रीयुत मान्यवर पण्डित जी प्रणाम आज बाद मुद्दत खिदमत में हाजिर होता हूँ, यह गैर हाजरी मजबूरी थी, जिसका मुझे अफसोस है, आशा है आप क्षमा करेंगे। इस अर्से में मैं दो अढ़ाई महीने तो बराबर बीमार रहा, जब उससे रिहाई मिली तो कुटुम्ब में एक जायदाद सम्बन्धी अभियोग उपस्थित हो गया, जो अभी चला जाता है, उसमें योग देना पड़ा। इन झंझटों में पड़कर जहां अन्य हानियां उठानी पड़ी वहां सबसे अधिक कष्ट- कर यह प्रतीत हुआ कि आपसे पत्रव्यवहार बंद रहा, जिससे दिल बहला रहता था। एक मित्र ने 'बंगवासी' के वे नम्बर मंगाकर पढ़े जिनमें 'बा० श्या० सु० दास 'की 'शालीनता' वाले लेख थे, क्या अब वक्तव्य' न छपेगा? मामला ठंडा हो गया? क्या बा० साहब ने "पुनन्तु मां ब्राह्मणपादरेणवः" कह दिया? ___ आजकल हिन्दी तथा संस्कृत के साहित्य संसार में कोई नई बात तो नहीं हुई? इस अवसर में हमें पत्रों के पढ़ने का बहुत कम मौका मिला। "सूनुतवादिनी" निकले जाती है ? उसके दो एक ग्राहक बढ़ाने की हमने चेष्टा की है।