पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१७७

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पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम मैं यहां से जनवरी के १ले हफ्ते में घर जाऊंगा। वहां से शायद ज्वालापुर मैं जाऊं। पं० भीमसेन जी और पं० गंगादत्त जी महाविद्यालय ज्वालापुर से एक पत्र निकालना चाहते हैं। इसके लिए मुझे आग्रहपूर्वक बुला रहे हैं। मैं इनकी आज्ञा और प्रणयानुरोध को टाल नहीं सकता। इसलिए जाना पड़ेगा, यद्यपि वहां अर्थलाभ कुछ नहीं, कुछ दिन रहकर उनका कहना भी कर दूंगा। कम्पनी बना कर प्रेस खोलना इस जमाने में जरा मुश्किल है। तीन महीने का परोपकारी अब इकट्ठा छप रहा है, बड़े दिन की छुट्टियों में परोपकारिणी का अधिवेशन होगा। उसी में इस्तीफा देकर मैं छुट्टी हासिल करूंगा। दिसम्बर की 'सरस्वती' आज मिली थी। विषय सूची ही पढ़ने पाये थे कि एक मित्र छीन कर ले गये, अब रात को लेकर पढ़ेंगे। ___ अफसोस है कि शंकर जी फिर बीमार हो गये। बा० मैथिलीशरण जी की कविता तरंगिणी का प्रवाह अविच्छिन्न बह रहा है, बड़ी खुशी की बात है। बार्हस्पत्य जी की लेखमाला को तो अवश्य पृथक् पुस्तकाकार छपाने का प्रयत्न कीजिए। इससे बड़ा लाभ होगा। हां, उनका फोटो तो 'सरस्वती' में दीजिए। अब आपके स्वास्थ्य की क्या दशा है ? इस वर्ष किसी कांग्रेस में जाइएगा कि नहीं? एक नरदेवशास्त्री क्या, मतान्धता वड़े बड़ों की अक्ल पर पर्दा डाल देती है, सभी मतों और सोसाइटियों का यह हाल है। एक आर्यसमाज ही इससे बरी क्यों रहे? कृपापात्र पद्मसिंह (६६) ओम् रिप्लाइड २८-१२-०८ मान्यवर पंडित जी महाराज अजमेर २६-१२-०८ प्रणाम कई दिन हुए कृपापत्र मिला, और 'संपत्तिंशास्त्र' भी, इस कृपा के लिए अनेक धन्यवाद । पुस्तक बड़ी ही सुंदर है, हिंदी में तो बिलकुल नई चीज़ है, ऐसी ऐसी