पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१७८

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१६४ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र गहन पुस्तकें लिखकर भी आप आराम से सोना चाहते हैं? नींद बेचारी का क्या कसूर है, वह दिमाग में आवे किधर से। 'सरस्वती' से मालूम हुआ, इस बीच में आपने 'हिंदी महाभारत' भी रच डाला है ? ऐसे ऐसे काम नींदवाले आदमी नहीं कर सकते, पर जागनेवालों का ही हिस्सा है, धन्य आपकी जागरूकता? आगरे में हमारे मित्र स्वा० मंगलदेव साधु हैं, उन्हीं से प्रायः 'आर्यमित्र' संबंधी बातें मालूम होती रहती हैं। वह उन लोगों के अंतरंग हैं। सिकन्दराबाद से एक पत्र निकला है, भेजता हूं देखिए। उसमें एक नोट इस विषय पर है। भाषा पुकार कर कह रही है कि बी० एन० की लेखनी से निकली हैं। मिश्र जी का कोई उत्तर आया हो तो लिखिए। ____ मैं फर्रुखाबाद नहीं जाऊंगा। कल २७ से २९ तक यहां परोपकारिणी का अधिवेशन है। उसमें परोपकारिका का मामला पेश होगा। उसके बाद १० जनवरी तक मैं यहां से घर जा सकूँगा, और आपके दर्शन करूंगा। ___ज्यों त्यों करके तीन मास का परोपकारी निकल गया। उसमें पं० रामचंद्र शर्मा का एक लेख 'आर्य' शब्द पर निकला है, जिसमें उन्होंने सरस्वती के लेख पर अपनी संमति प्रकट की है। यद्यपि लेखक ने प्रायः श्री घोष को ही मुखातिब किया है, तथापि में इसके लिए आपसे क्षमा मांगता हूं, लोगों ने मजबूर कर दिया कि परोपकारी में इस पर कुछ जरूर निकलना चाहिए। अपना स्वास्थ्य समाचार और अभियोग विचार लिखए। परोपकारिणी के अधिवेशन के लिए कागजात की तैयारी में लगा रहने से फुरसत न था इसलिए पत्र में विलंब हुआ। कृपापात्र पद्मसिंह शर्मा रिप्लाइड उज्जैन २५-२-०९ फा०व० ३० सं०१९६४ श्री पंडित जी प्रणाम मुझे कालिदास की भक्ति उसकी लीलास्थली देखने की उत्कण्ठा यहां खींच लाई। मुझे सीधा ज्वालापुर जाना चाहिए था, आज वहां पहुंच जाना चाहिए