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पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/२०३

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पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १८९ (८९) महाविद्यालय ज्वालापुर १४-५-१२ श्रीयुत माननीय द्विवेदी जी प्रणाम १३ ता० के दोनों कृपाकार्ड आज मिले, कृतार्थ हुआ। 'सत्यग्रंथमाला' में कायर महात्मा के चपत लगाये जाने की बात पढ़ने की प्रबल उत्कंठा है, मुझे पता मालूम नहीं वह कहां से मिलेगी, कृपया आप लिख दीजिए कि एक कापी वी० पी० से हमें भेज दें। एक दरजन से अधिक झूठ क्या, वह तो इतना झूठ बोलता है, जितने कि उसके शरीर में रोए भी नहीं।" पारेपार्द्धगणितंयदिस्यात्”...तो उसके सारे झूठ गिने जा सकें। 'भास्कर' में 'दिल्ली दरबार' पर भी आपकी दृष्टि पड़ गई और उसमें आपको आनंद आ गया तो लेखक का काम सफल हो गया, वह लेख दरअसल मैंने 'भारतोदय' के लिये लिखा था, पर उसमें समय पर निकल न सका, इसलिए 'भास्कर' को भेज दिया, वह मुद्दत से सिर था कि कुछ भेजो, यदि मैं यह जानता कि श्रीमान् को वह पसंद आ जायगा तो वहीं भेज देता। अस्तु, गीता के विषय में आज पं० रामजीलाल जी का भी कार्ड आया है कि मार्च के अंत तक काम पूरा होगा। मैंने उन्हें लिख दिया है कि तबतक रहने दें। कृपापात्र पसिंह शर्मा (९०) बोम् ज्वालापुर, महाविद्यालय २६-२-१३ श्रीयुत द्विवेदी जी महाराज प्रणाम

मैं १५-२-१३ को यहाँ से लाहौर डिपुटेशन में गया था, आज वापस आया

हूं, पीछे श्रीमान् का कृपाकार्ड पहुंचा, पढ़कर खेद हुआ, मुझे आप जैसे सहृदय विद्वान् से ऐसे रूखे सूखे उत्तर की आशा न थी। श्रीमान् को याद होगा अबसे कई मास पूर्व जब आपने प्रेस के लिये कुछ काम भेजने के लिये मुझे लिखा था, तब