पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/२१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पं० श्रीधर पाठक जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १९९ "इस अध्याय में वर्णन किया गया विषय"- ये सब प्रचलित प्रथा के प्रतिकूल हैं- गत जुलाई की "सरस्वती" में "पुस्तक परीक्षा" के अन्तर्गत कई एक बातें हमें ठीक नहीं जचती- _मैं कोई नवीन प्रणाली निकालना नहीं चाहता, परन्तु शिष्ट सूक्ष्म प्रथा का परम पक्षपाती हूं-मुझे राजा शिवप्रसाद, पं० राधाचरण गोस्वामी, लाला बालमुकुन्द गुप्त की लेख शैली बहुत रुचती है- और मुझे असीम प्रसन्नता हो यदि आप इन सुलेखकों का अनुसरण कर सकें। आशा है उत्तर भेजियेगा- आपका स्नेहभाजन श्रीधर श्रीप्रयाग १५-१२-०५ दयालु मित्र १२ के पो० का० का धन्यवाद है-कृपा करके लिखियेगा कि आनेवाले अधिवेशनों के दिनों आप काशी पधारेंगे या नहीं-मेरा भी जाने का विचार है- पर ठहरने के लिये ठौर का ठिकाना नहीं है-आप जायंगे तो कहां उतरेंगे? जो हो, जो मैं गया तो आप से जरूर मिलूंगा और उसी समय “क्ति कार्ड" आपको भेंट करूंगा- कृ० का० श्रीधर पाठक श्रीप्रयाग २७-४-०६ गोप्य (Confidential) I hope you will feel offended at this letter. प्रिय मित्र जब आपका पत्र आया तब हम खाट में पड़े थे। हम उस्को पाते ही खाट से छठ पड़े और हमने उस्में लिखी गयी बातों का पूर्णतया विचार किया। कहना न