पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/२२८

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श्री पं० बालकृष्ण भट्ट के पत्र

श्री पं० श्रीधर पाठक जी के नाम

श्री मत्सु

वह लेख छपेगा और कुछ भेजते तो बड़ी कृपा होती। इस बार ३ महीने का एक में निकालेगा। ५ फर्मा हुए अभी कम से कम ३ फर्मा और चाहिए । कहां तक लिखें कोई बात ही नहीं सूझती-लेख का धन्यवाद और के लिए आशाबद्ध।

प्रयाग

आपका अनुरागी

१०-१०-११

बालकृष्ण

पं० श्रीधर पाठक जी को ( २ )

श्री मत्सु श्रीशः पायादपायाद्व:-.

.......समय अति दीन........गा के कृपापात्र हो गये। हमारी आँख जाती रही। खुलाया है पर पढ़ लिख नहीं सकते, इसीसे पत्र में भी देर हो गई। जो भेजा है पहुँचा होगा। अब आगे निकालने की कौन आशा करे। हमारा तो अब जीवन व्यर्थ हो रहा है। ईश्वर का हम पर कोप है, पढ़ना जो जीवन का सार था, उस्से हम वंचित हो गए। कृपाकांक्षी १७-५-१९०८ बालकृष्ण

पं० श्रीधर पाठक

जी को

प्रयाग

पुस्तक पठवन काज-देत बहुत धनवाद तोहि विनती मम यहि आज-नव रचना भेजत रही। हिय हुलसत अवगाहि-पद्यअम्बु यहि सरवरहि।