पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/३०

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द्विवेदी जी के पत्र 'जनसीदन' जी के नाम अनुभवत ददत वित्तं मान्यान् मानयत सज्जनान् भजत। अति - परुष - पवन - बिलुलित - दीपशिखा - चंचला लक्ष्मीः ॥ किसी लेखक या ग्रंथकार की जो सहायता की जाती है वह प्रायः उसे उत्सा- हित करने के लिए की जाती है। सो हम यों ही उत्साहित हो रहे हैं। आपके श्रीमान की हमपर कृपा-दृष्टि है, यह हमारे लिए सबसे अधिक उत्साह-वर्द्धक बात है। गत एप्रिल महीने तक हम एक ऐसे पद का उपभोग करते रहे जिसमें खूब द्रव्य- प्राप्ति भी थी और प्रभुत्व भी था। अब यद्यपि हम उससे अलग हो गए हैं तो भी आपके आशीर्वाद और श्रीमान् राजा साहेब जैसे महोदयों के कृपा-कटाभ से हमको इस समय भी इतनी प्राप्ति है कि उसके दशांश के लिए भी सैकड़ों अंगरेजी पढ़े अजियां लिए इधर-उधर घूमा करते हैं। कुछ चिट्ठियां हम आपको भेजते हैं, यह दो ही चार महीने के बीच की हैं। ये सभी राजाओं और राजाधिकारियों की हैं। इनसे आपको विदित हो जायगा कि इस तुच्छ जन पर आपके श्रीमान् ही की तरह और श्रीमानों की भी कृपा है। इन चिठ्ठियों में एक और चिट्ठी भी आपको मिलेगी, जिससे आपको मालूम होगा कि जिस रेलवे में हम नौकर थे उसके एजेंट ने प्रसन्न होकर अभी इसी महीने ९०० रु० हमें इनाम देने का हुक्म दिया है। इन सब चिट्ठियों को कृपा करके वापस कर दीजिएगा। यह सब लिखने का यह मतलब है कि परमेश्वर किसी प्रकार भोजन-वस्त्र हमें दिए जाता है। परन्तु आपके श्रीमान् राजा हैं, हम ब्राह्मण हैं। ब्राह्मण को लेने में क्या इनकार हो सकता है। दान और प्रतिग्रह दो ही तो उसके प्रधान काम हैं। ___ लेकिन खास हमारे लिए अभी सहायता अपेक्षित नहीं। यदि श्रीमान् की यह इच्छा हो कि लोग जानें कि वे हिंदी के कहां तक सहायक हैं, उसके उत्कर्ष-साधन में कहाँ तक यत्नवान् हैं, उसके लिखने वालों के कहाँ तक उत्साह-वर्द्धक हैं, तो अपने और 'सरस्वती' के संपादक के गौरव का पूरा विचार करके 'सरस्वती' के लेखों पर प्रसन्न होने का सूचक, जो चाहें भेज दें। तद्विषयक एक लेख 'सरस्वती' में निकल जायगा। हाँ, यदि आपकी सहायता की सूचना देना अनुचित समझा जायगा, तो वह रुपया हम 'सरस्वतो' के मालिकों को भेज देंगे। उसके परिवर्तन में श्रीमान् को सरस्वती की यथासंख्य कापियां मिला करेंगी और हमसे उससे कुछ संबंध न रहेगा। भवदीय महावीरप्रसाद द्विवेदी