१४ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र (१५) जुही, कानपुर २०-१०-१९०४ प्रिय पंडितवर आपका स्नेहसंवलित पत्र आया। आपने हमारी प्रशंसा लिखकर हमको लज्जित किया। हमारे पहले पत्र में आत्मश्लाघा का कुछ कालुष्य रहा हो तो आप क्षमा करें। हमारी यही....अभिलाषा है कि आपके श्रीमान के यहाँ सदैव भीड़भाड़ रहे.....व काम-काज की अधिकता रहे और सदैव नए-नए उत्सवों का अनुष्ठान होता रहे। इन कारणों से यदि हमको पत्र लिखने के लिए श्रीमान को समय न मिले तो विषाद के बदले हमें उलटा हर्ष ही होगा। शिक्षाशतक छपने गया। अब लगातार उसका प्रकाशन होता रहेगा, 'पश्चा- ताप' को भी पूरा कीजिए। पर श्रीमान राजा साहब का पत्र हमारे पास आने तक ठहरिए। भवदीय महावीरप्रसाद द्विवेदी जुही, कानपुर २०-११-०४ प्रिय पंडित जी, प्रणाम. . कृपापत्र आया। वृन्दावन जाते समय आप अवश्य दर्शन दीजिए। हमारा इरादा अभी यहीं रहने का है। बाइसिकिल के मूल्य की सीमा निर्दिष्ट हो चुकी है। इसलिए हम मेकर का नाम इत्यादि बताने की तादृश आवश्यकता नहीं समझते। उतने में जहाँ, जिस देश और जिस मेकर की मीडियम साइज मिल सके, भेजिए। हम उसे श्रीमान् का प्रेमोपहार समझ बड़े आदर और सम्मान से रक्खेंगे। और....जहाँ तक हल्की, नफीस और मजबूत हो। उसके साथ उसकी . सामग्री लैम्प, पूचर थे (?) जो अन्य चीजें रहती हैं वे सब रहें तो और भी अच्छा हो।
पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/३१
दिखावट