पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/३६

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द्विवेदी जी के पत्र 'जनसीदन' जी के नाम (२३) दौलतपुर डा० भोजपुर, रायबरेली १५-४-०६ प्रिय पंडित जी कृपापत्र यहां मिला । हमारी बृद्ध माता बीमार हैं। उन्हीं को देखने आये। २-४ दिन में कानपुर वापस जायंगे। भट्टाचार्य जी के चरित की सामग्री उनके पुत्र ने भेजी थी। उसमें पिता का नाम नहीं था। इससे हमने भी पूछने की परवा नहीं-वैसे ही रहने दिया। आपके उस पत्र का वह वाक्य हमारे ध्यान में नहीं रहा, इससे वैसी गलती हुई। अब ऐसा न होगा, क्षमा कीजिए। ___ श्रीमान ने वाइसिकल के बारे में एक बहुत ही शालीनतासूचक पत्र हमको भेजा है। आपने तो देखा ही होगा। देना और नम्रता दिखाना सबका काम नहीं। हम श्रीमान् के सौजन्य पर मुग्ध हैं । इसी से हमने बाइसिकल की समालोचना भर कर दी है। उपहार की वस्तु की समालोचना ही क्या। वह तो सिर के बल लेना चाहिए। पर श्रीमान् ने पूछा कि वह कैसी है, इसलिए उसकी त्रुटियां हमने लिख दीं। हमको आशा है,हमारा सद्भाव देखकर श्रीमान् उसका विचार न करेंगें। लेकिन वाल्टर लाक को एक फटकार भेजनी चाहिए। उसने बड़ी बेपरवाही से • मरम्मत की है। अगर यहां उसके ऐब ठीक न हुए? तो शायद हमें भी उसे कलकत्ते या लाहौर भेजना पड़े। प्रार्थनाशतक को पूरा कीजिए। भवदीय महावीरप्रसाद द्विवेदी । (२४) कानपुर ८-६-०६ बहुविध प्रणाम कृपापत्र आया। सचमुच ही गंगातट पर भ्रमण करना बहुत ही सुखकर और शांतिदायक होता है-विशेषकर इस ऋतु में। हमारा भी घर गंगातट पर है। दो