द्विवेदी जी के पत्र पं० ज्वालादत्त शर्मा के नाम (१२) जुही, कानपुर १४-३-१६ नमस्कार अब तो आप पूरे शास्त्री हो गए। शास्त्र के तीन तीन वचन लिखने लगे। पर शास्त्रों में मेरी भक्ति नहीं। इस निवेदन को भी ध्यान में रखिएगा। भवदीय म. प्र. द्विवेदी (१३) जुही, कानपुर ६-११-१६ श्रीमन् कृपाकार्ड मिला। आइए, दर्शन दीजिए, कृपा होगी। आप शायद जानते ही होंगे कि मैं शहर से ३-४ मील दूर देहात में क्या जंगल में रहता हूँ। पहले मैं यहाँ आराम से था। पर कई कारणों से अब तकलीफ में हूँ। यदि आप अपने हाथ से भोजन बना सकें और माफ कीजिए बर्तन चौका भी कर सकें तो आप यहीं चले आइए, अन्यथा नहीं। क्योंकि यहाँ अहाते भर में इस समय एक भी ऐसा आदमी नहीं जो चौका बर्तन कर सकता हो। इसी से शिष्टता के विरुद्ध मैंने यह बात साफ साफ लिख दी कि ऐसा न हो जो आपको तकलीफ दे। भवदीय महावीरप्रसाद द्विवेदी
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