पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/५६

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द्विवेदी जी के पत्र पं० ज्वालादत्त शर्मा के नाम बिंदकी रोड स्टेशन पर एक घंटा बेहोश रहा। तीन दौरे हो चुके । मानसिक कमजोरी बढ़ गई है। कहानी मिली। धन्यवाद, बहुत अच्छी तो नहीं, पर छाप दूंगा। भवदीय म०प्र०द्विवेदी (१७) दौलतपुर २४-४-१८ प्रणाम कहानी मिली। बहुत पसंद। भानजी का व्याह यहीं से ७ मई को होगा। मैं बड़ा अभागा, आप बड़े पुण्य- वान, छोटी भानजी को न्यूमोनिया है। घर में स्त्री नहीं। सिर्फ एक है दूर के रिश्ते की। कौन बिटिया की सेवा करे कौन व्याह का सामान जुटावे। 'स्वरूपस्तुतेका ही व्यथित- म०प्र० द्विवेदी (१८) दौलतपुर, रायबरेली १६-१२-१९१८ प्रणाम ९ का पो० का० आज मिला। एक हफ्ते से मैं यहां की धूल फांक रहा हूँ। खेत यो हीं पड़े हैं। उन्हीं से धूल उड़ती है, तबीयत कुछ अच्छी है। जान पड़ता है विश्राम से आराम मिलेगा। शुकुल जी बड़े सज्जन, बड़े सरस हृदय और हास्य के पूरे अवतार हैं। कहानी मिल गई होगी। जवाब १००,५०चिट्ठियां जमा हो जाने पर वे देते हैं। मैं उन्हें कुछ न लिखूगा। मेरी प्रार्थना है कि आप खुद उन्हें लिखें। उसमें डांट भी हो (फट- कार भी हो) हास्य भी हो, परिहास भी हो, काहिनी की संहिता भी हो और थोड़ा सा काव्य रस भी हो। बहुत प्रसन्न होंगे। आपसे घनिष्टता करने लगेंगे। भवदीय म०प्र० द्विवेदी