द्विवेदी जी के पत्र पं० कामताप्रसाद गुरु के नाम ४५ मुझे पुस्तक प्रकाशकों से नफरत सी होती जाती है। पर यह जबलपुर का मामला तो बहुत ही खेद जनक है। आप जो जानते कि यह दशा होगी तो मुझे कभी न फंसाते। अब क्या करना चाहिए लिखिए। बाबू साहब को भेजी गई मेरी चिट्ठी की नकल मुझे लौटा दीजियेगा, अपनी फाइल पर रक्खंगा। आपका म०प्र० द्विवेदी पुनश्च-मेरी इस चिट्ठी को पढ़कर बाबू साहब से जरा मिलिए। मन्दिर को कर्ज न सही मुझी को ४०० रु० कर्ज दें और मेरी रायल्टी से, मन्दिर से, वसूल करते रहें। पं० कामताप्रसाद जी गुरू के नाम दौलतपुर, रायबरेली २३-१-२९ नमस्कार __मेरी पुस्तकों के सम्बन्ध में आपका पत्र आये मुद्दत हुई। आपकी सलाह के मुताबिक मैं अब तक चुपचाप बैठा रहा। कृपा करके सेठ गोयिन्ददासजी को फिर याद दिलाइए। बड़ी कृपा हो जो वे मेरा अविशिष्ट प्राप्य अंश किसी तरह दें या दिला दें और पुस्तकें अन्यत्र छपाने की अनुमति भी दे दें। मैं विशेष रुग्ण हो रहा हूँ। शरीर का कुछ ठिकाना नहीं। कुछ दान करना चाहता हूँ। यह रुपया मिल जाय तो इसे भी हिन्दू विश्वविद्यालय या और किसी संस्था को अर्पण कर दूं। यदि सेठ साहब कुछ न कर सकें तो कृपा करके वैसा उत्तर ही दे दें। मैं किसी पत्र में एक छोटा सा लेख देकर तद्वारा अवशिष्ट रुपया और पुस्तकें गोविन्दार्पण कर दूंगा। वह भी एक प्रकार का दान ही होगा। पं० कामताप्रसाद गुरू जी के नाम कृपैषी महावीरप्रसाद द्विवेदी
पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/६०
दिखावट