पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/६९

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५४ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र कल एक बक्स पुस्तकों से और भरा गया। कोई २०० पुस्तकें और रखी गई हैं। अब बस इतनी ही जा सकेंगी, ८ बक्स हुए। बाकी दूसरी दफे। पारसल से भेजने में बहुत खर्च पड़ेगा। मेरी समझ में माल से ही यह माल भेजा जाय। २० ता० को लैन खुलेगी। तबतक बाबू वा० स० यहीं रहें। मैं कल गांव चला जाऊंगा। पुस्तकों की पहुंच वहीं लिखिएगा। मुझे डर लगा कि राय कृष्णदास कहीं नाखुश न हो जायं। यहाँ उनके लायक सिर्फ ३ पुस्तकें थीं:- (१) जेनरल रिपोर्ट आन कंट्री १९११-१२ (२) १९१२-१३ (३) लोन ऐंटीक्युटीज इन कोनोरेसन्स दरहर। इनको मैंने बाबू वा० स० को दे दिया है। साथ लावेंगे। आप रायकृष्णदास को दे दीजिएगा। बाबू श्यामसुन्दरदास, बी० ए०, आपका मंत्री, नागरीप्रचारिणी सभा, काशी. म०प्र०द्विवेदी (९) जुही-कलां, कानपुर ९-११-२४ आशीष बहुत समय से आपकी चिट्ठी नहीं आई। आप अच्छे तो हैं. ? अर्शरोग जाड़ों में अधिक दुख देता है। वह कैसा है ? कभी कभी अपने समाचार लिख भेजा कीजिए। • आपके बीमार हो जाने के कारण मैं यहाँ चला आया। अब कुछ अच्छा हूँ। पांच सात रोज बाद गांव लौट जाने का विचार है। ___अपने बसीयतनामें में मैंने बची हुई पुस्तकें भी सभा को दे डालने की बात लिख दी है। कुछ थोड़ी-सी छोड़कर। उतने अंश की नकल मै किसी दिन सभा को भेज दूंगा.। बाबू श्यामसुन्दरदास बी० ए० प्रो० हिंदी साहित्य, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, बनारस. आपका म. प्र.द्विवेदी