द्विवेदी जी के पत्र डॉ० बल्देवप्रसाद मिश्र के नाम दौलतपुर, रायबरेली श्रीमान् मिश्रजी महाराज नमो नमस्ते आपके श्यामशतक के कई पद्य पढ़कर मुझे रोमांस हो आया और आंखें साश्रु हो गई। श्रीमद्भागवत में यम, इंद्र, मुचकुन्द, नागपत्नियां, उद्धव, प्रहलाद आदि कृत स्तुतियां आपने पढ़ी ही होंगी। प्रहलाद का कहना है:- विप्राद् द्विषद्गुणयुतादरबिन्दनाम, पादारविन्दविमुखाच्छ्वपचं वरिष्ठम् । मन्ये तदर्पितमनो वचने हितार्थ, प्राणं पुनाति सकुलं न तु भूरि मानः।। यह सब तो आप में है ही। गुस्ताखी माफ हो, लोक कल्याण भी कुछ कीजिए आप सत्कवि हैं। बोलचाल की भाषा में एक काव्य लिखिए। उसका नाम रखिए रामराज्य; 'उटोपिया' के सदृश। काव्य का नायक कल्पित हो। उसके सुप्रबंध का वर्णन कीजिए। हर महकमे या हर विषय के लिये एक-एक सर्ग अलग हो। वर्तमान गवर्नमेंट के प्रबंध पर कहीं व्यंग्य से भी आक्षेप न हो, सारी कथा कल्पित हो। उससे सिर्फ यह सिद्ध हो कि सुराज्य ऐसा होता है। ऐसे काव्य से जनसमुदाय का कल्याण होगा, हिंदी का सौभाग्य बढ़ेगा और आपकी कीर्तिकौमुदी दिगन्त न सही भारत में तो अवश्य ही दूर-दूर तक फैल जायगी। - मैं उस दिन फिसल कर गिर पड़ा। बाएँ पैर की गांठ में चोट लगी। चल फिर कम सकता हूँ। दाहने हाथ की अनामिका उंगली भी बेकार हो गई। मुश्किल से लिख सकता हूँ। कृतज्ञ महावीरप्रसाद द्विवेदी (६) भाई मेरे तुलसी दर्शन की कापी आपने क्या भेजी मुझे संजीवनी का दान दे डाला। 'मैंने उसका कुछ ही अंश अबतक पढ़ा कर सुना है विशेष कर भक्ति विषयक। मैं मुग्ध हो गया। आप धन्य हैं। ऐसी पुस्तक लिखी जैसी तुलसी पर आज तक 'किसी ने न लिखी थी और न यही आशा है कि आगे कोई लिखेगा।
पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/७४
दिखावट