यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
द्विवेदी जी के पत्र डॉ. बल्देवप्रसाद मिश्र के नाम यह इतना निवेदन लिखने के कारण आज रात को शायद ही मुझे नींद आवे। मेरा मस्तिष्क इतना भी परिश्रम बरदाश्त नहीं कर सकता। मुझे जो यह दंड अका-- रण ही दिया गया है उसके दोष परिहार के लिये रम्यरास के कविवर १०८ दफा राम नाम स्मरण करने या जपने का कष्ट उठावें। दौलतपुर, रायबरेली म०प्र०द्विवेदी २४-१०-३३ (श्री कालीचरण त्रिवेदी जी के अनधिकृत आग्रह के कारण ही श्री द्विवेदी जी को यह खीझ-भरा पत्र लिखना पड़ा था। परन्तु यह पत्र भी अपने ढंग का निराला है अतः प्रकाशित किया जा रहा है। स्व० रायगढ़ नरेश की इच्छा कदापि न थी कि उनकी पुस्तक के सम्बन्ध में श्री द्विवेदी जी को किसी प्रकार का कष्ट दिया जाय।-संपादक)