पृष्ठ:धर्मपुत्र.djvu/१०७

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36 शराब में डूबे हुए और ऐयाशी की आग में झुलसे हुए मुगल तख्त को फिर से वीरान लालकिले में आबाद करने के दिल्ली के मुसलमानों के मनसूबे जैसे पर लगाकर उड़ चले। विभाजन की बातें चल रही थीं, तभी जिन्ना का डाइरेक्ट ऐक्शन दिल्ली में बड़ी-बड़ी तैयारी कर रहा था। बन्दूक, गोले-गोली, तोपें, पिस्तौल, बम, ट्रान्समीटर सब कुछ दिल्ली की गुप्त हवेलियों में तैयार था। और दिल्ली को फतह करने की एक तारीख भी मुकर्रर हो चुकी थी-इक्कीस अगस्त। दरियागंज के एक मुस्लिम प्रेस में श्री खन्ना, एक युवक, कई महीने से कम्पोज़ीटर की नौकरी बजा रहा था। वह दिलीप का गोइन्दा था। राष्ट्रीय संघ समिति की आज्ञा से वह इस ड्यूटी पर तैनात हुआ था। नाम यहाँ उसने अपना बताया था ‘शकूर' और रहने वाला शाहाबाद जिले के किसी देहात का। सभी उसे बूदम समझते थे। बनाते थे। वह घुन्ना बना अपना काम करता रहता था-वास्तव में रहने वाला था वह कटरा नील का। यह मुहल्ला हिन्दू रईसों का मुहल्ला है। इसके द्वारा प्रतिक्षण मुस्लिम षाड्यन्त्रों की सूचनाएँ दिलीप को मिलती रहती थीं। एक दिन शकूर ने देखा, उसके पड़ोसी कम्पोज़ीटर के सामने एक पर्चा पड़ा है। पर्चे में इक्कीस अगस्त के डाइरेक्ट ऐक्शन का प्रोग्राम था। उस पर अर्जेंट लिखा था- और पास वाला युवक जल्दी-जल्दी इसे कम्पोज़ कर रहा था। खन्ना ने कहा, “यार, इस कदर बेतहाशा किस काम में मशगूल हो?" साथी ने कहा, “अरे शकूर, अर्जेंट पर्चा है, ज़रा मदद कर, कुछ लाइन कम्पोज़ कर दे।" शकूर ने नखरे से कहा, “वाह, मेरे पास अपना ही काम क्या कम है? फोरमैन दोपहर को कान ऐंठ देगा।" "नहीं यार, दस मिनट ही का तो काम है। ले, ज़रा झपाके से हाथ चला।” परचा उसने उसके सामने सरका दिया। शकूर अपने हाथ का काम छोड़ साथी की मदद करने पर्जे को पढ़ते-पढ़ते शकूर को पसीना आ गया। तब क्या इक्कीस अगस्त को दिल्ली उलट-पलट हो जाएगी? उँगलियाँ उसकी केसों में बिखरे हुए टाइप को ढूँढ़ रही थीं, और मन उसका मचल रहा था दूसरी ही जगह। उसे एक अवसर भी मिल गया। पेशाब करने के बहाने वह उठा। परचा उसने जेब में डाला। साथी का ध्यान दूसरी ओर था। पेशाबघर में घुसकर वह दूसरी ओर दीवार कूद गया, फिर वह भागा दिलीप के पास। कुछ दूर ट्राम ली, फिर पैदल। थोड़ी ही देर में साथी का उधर ध्यान लगा। कहाँ गया शकूर का बच्चा, और पर्चा कहाँ है? सामने बिखरे कागज़ों में उसने बहुत टटोला। उसका चेहरा फक हो गया। क्षण-भर बाद ही प्रेस में हलचल मच गई। शकूर की तलाश में गोइन्दे दौड़े। परचा पढ़कर दिलीप सकते की हालत में हो गया। वह सोचने लगा। इक्कीस अगस्त को दिल्ली में भी लाहौर की ज्वाला उठेगी। चाँदनी चौक अनारकली की भाँति धाँय-धाँय लगा।