डाक्टर को न लगी। बालक की भी कोई खबर नहीं ली। बानू का रूप, तेज और प्रभाव डाक्टर को आहत कर गया था और डाक्टर कभी भी बानू को न भूल सके। बानू की हीरे की कनी के समान उज्ज्वल अमल-धवल वह मूर्ति सदैव डाक्टर के मानस-नेत्रों में प्यार की पीर की एक बाँकी झाँकी बनी रखी रही, जिसे अरुणा ने ही जाना। पर इसके लिए उसने डाक्टर को कभी लानत-मलानत नहीं दी। सहानुभूति और उदारता से उसने सहन किया। सम्भव है, बानू के प्रति यह स्नेहाकर्षण होने के कारण डाक्टर का मन बालक दिलीप के प्रति ममता से अधिक ओत-प्रोत रहता था।
दिन बीतते चले गए, युग करवट बदलता चला गया। जनजीवन भी नियति की नियत चाल पर थिरकता चला गया। डाक्टर-दम्पती यौवन की देहरी पार कर वार्धक्य पर बढ़े और उनके बालक यौवन के राज्य में प्रविष्ट हुए। विश्व की रंगभूमि पर हिटलर आया, मुसोलिनी आया, स्टालिन आया, रूस में लाल सितारा चमका, अमरीका के उड़नकिले उड़े, हिटलर के चमत्कारों से विश्व चमत्कृत हुआ। महाराज्यों के राजमुकुट उड़-उड़कर हवा में बिखर गए। समूचा मानव-विश्व रक्त-स्नान में जुट गया। देश, राष्ट्र, पूँजी, सत्ता-अधिकार, सत्ता अपनी-अपनी सीमाएँ बदलने लगे। आकाश में वायुयान अनेक करतब दिखाने लगे। जापान का आतंक आया और अणु महास्त्र ने जादू के ज़ोर पर उसे विलय कर दिया। सोना और खून दुनिया में अपनी होड़ लगाने लगे। संसार का साहित्य, संसार की वाणी, संसार की विचार-सत्ता, संसार का मस्तिष्क सब कुछ 'सोना और खून' की महत्ता को समझने में जुट गए। सोना मनुष्य के शरीर पर लदा था और खून उसकी नसों में बह रहा था। सोने में उसका संसार था। और खून में उसका जीवन था। मनुष्य खून बहाता था, पर सोना देना न चाहता था। इससे मनुष्य का खून एक करामात बन गया। ज्ञान-विज्ञान, शक्ति, सत्ता, सभी मनुष्य का खून उसकी नसों से बाहर निकाल बहाने में जुट गए।
बहुत लोग मर-खप गए। जो रह गए उनके सामने नई दुनिया थी—भूखी-प्यासी, भयभीत, कंगाल और अविश्वस्त; चिन्ता और वैकल्य से परिपूर्ण; अभाव और अन्धकार से लथपथ। इसने लोगों के रहन-सहन सोचने-विचारने के ढंग बदल दिए थे।
डाक्टर-परिवार पर भी उसका असर था। बच्चे अब कालिज में उच्च शिक्षा पा रहे थे। दिलीपकुमार एम. ए., एल-एल. बी. कर राष्ट्रीय संघ में नाम लिखा चुका था। वह कट्टरपंथी हिन्दू था। मुसलमानों का घोर विरोधी, हिन्दू संस्कृति का परम हिमायती। सुशील था कम्युनिस्ट, असहिष्णु और मज़दूरों का नेता। बी.ए. पास करके उसने अर्थशास्त्र में एम. ए. पास किया था। शिशिर था कांग्रेसी, खद्दरपोश। वह बी. ए.फाइनल में था। करुणा अध्ययन कर रही थी चिकित्सा-शास्त्र, लेडी हार्डिंग में। वह थी मानववादिनी, अल्पभाषिणी, भावुक, सरल-तरल, जनहित से ओत-प्रोत, सब भेदभावों से दूर मनुष्य के प्यार से ओत-प्रोत।
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