पृष्ठ:धर्मपुत्र.djvu/४९

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दिलीप ने और कसकर माँ के चरणों को हृदय से लगा लिया। और वह कुछ देर चुप बैठा रहा। फिर उन चरणों में मस्तक रख तेज़ी से वहाँ से चल दिया। 14 विश्व महायुद्ध ने संसार को दो भागों में विभक्त कर दिया था। एक भाग था जनवादी देशों का, जिनका नेतृत्व तरुण पीढ़ी कर रही थी। दूसरा था पूँजीवादी देशों का, जिनका नेतृत्व दकियानूसी पुराने मोटे पेटवाले कर रहे थे। जनवादी देशों का मूल मन्त्र था-श्रम, और पूँजीवादी देशों का अर्थ। यह श्रम-शास्त्र इस युग की सबसे बड़ी विरोधिनी शक्तियाँ बन रही थीं और यद्यपि संसार अभी तक गत विश्वयुद्ध के घावों से भरपूर कराह रहा था- पर उसके सिर पर तीसरा महायुद्ध मंडराता आता दिख रहा था। दुनिया के आदर्श बदल गए थे। जीवन के ध्येय बदल गए थे। विश्व सिमटकर जैसे प्रत्येक व्यक्ति की इकाई में समा गया था। जनवादी देशों के तरुण मानव-प्रतिष्ठा के लिए चरम संघर्ष कर रहे थे। ऐसे तरुण जो जहाँ थे, सारे संसार के वैसे ही तरुणों से उनके सम्पर्क स्थापित होते जाते थे। राष्ट्रीयता, जातीयता और देश की दीवारों को तोड़-फोड़कर, किसी भी बाधा की आन न मानकर विश्व के तरुण मानव-प्रतिष्ठा के लिए एकीभूत होते जा रहे थे। उनका संगठन विश्वव्यापी था। और विश्व जैसे एकीभूत हो उनके निकट आ रहा था। नदियों ने, पर्वतों ने, समुद्रों ने, देशों की सीमा-रेखाओं ने यद्यपि उन्हें पृथक् कर रखा था-पर वे एक थे। साहस और निर्भीकता से, जनवाद की विजय में अटल विश्वास रखकर वे तीव्रता से एक होते जा रहे थे। विश्वयुद्ध में सारे संसार के नौजवानों के भाग्य का निर्णय रूस की युद्ध-भूमि में हुआ था। सोवियत नौजवान यह समझते थे कि हमने फासिज़्म को परास्त करके सारे संसार के मनुष्यों को गुलामी से बचा लिया है। संसार-भर के तरुण सोवियत तरुणों के इस कार्य को श्रद्धा की दृष्टि से देखते थे। दुनिया के करोड़ों युवकों के हृदयों में उनके नाम आग के अक्षरों की भाँति धधक रहे थे। इधर आंग्ल-अमेरिकन गुट दुनिया को खून की नदी में फिर एक बार डुबा देना चाहता था। अमेरिका के डालर शाह अब वही नारे बुलन्द कर रहे थे जो कल तक जर्मन फासिस्ट लगाते थे। और अब ठीक संसार के मनुष्यों के भाग्य-निर्णय का काल उपस्थित हुआ था। उनके सामने सिर्फ दो ही मार्ग थे वे स्वतन्त्र हों या आंग्ल-अमेरिकन साम्राज्यवाद के गुलाम। सोवियत संघ जनवाद के कट्टर हिमायती उत्पन्न कर रहा था। राष्ट्रीयता को वे भयानक और घृणास्पद समझते थे। सोवियत संघ तरुणों को अन्तर्राष्ट्रीयता की दीक्षा दे रहा था। वह विश्व के जनवादी युवक-संघों के साथ सम्बन्ध स्थापित करने के लिए उन्मुख था। सोवियत तरुण हर तरह यह उद्योग कर रहे थे कि संसार के जनवादी तरुण एक हैं और उनकी एकता फौलादी एकता है। समस्त संसार में प्रगतिशील आन्दोलन पर सोवियत तरुणों के जीवन और संघर्ष का