पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/१२६

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यात्रा [ पत्र पास फिर जाऊं और देखें कि वे अब लो जीते हैं कि नहीं यितरू ने मूसा को कहा कि कुशल से जा॥ १९ । तब परमेभार ने मदियान में मूसा को कहा कि मिस्र में फिर जा क्योंकि वे सब जो तेरे प्राण के गाहक थे से४ मर गये ॥ २० । तब मूसा ने अपनी पत्नी को और अपने पुबो को लिया और उन्हें गदहे पर बैठाया और मिन के देश में फिर श्राया और मूसा ने ईश्वर की छड़ी हाथ में लिई ॥ २१ । और पर- मेश्वर ने मूमा को कहा कि जब तू मिस्र में फिर जाय तो देख कि सब पाश्चर्य जो मैं ने तेरे हाथ में रक्खे हैं फिरजन के आगे दिखाइयो परंतु मैं उस के मन को कठोर करूंगा कि वुह उन लोगों को जाने न देगा। २२ । तब फिरज़न को यो कहिया कि परमेश्वर ने यों कहा है कि इस- राएल मेरा पुत्र मेरा पहिलोठा है॥ २३ । से मैं तुझे कहता हूं कि मेरे पुत्र को जाने दे कि वुह मेरौ सेवा करे और यदि तू उसे रोकेगा तो देख मैं तेरे पहिलोठे को मार डालूंगा। २४ । और भागे के एक टिकाव में यों हुआ कि परमेश्वर उसे मिला और चाहा कि उसे मार डाले ॥ २५ । नव सफूरः ने एक चोखा पत्थर उठाया और अपने बेटे की खलड़ी काट डाली और उसे उस के पात्रों पर फेंका और कहा कि नू निश्चय मेरे लिये रक्तपानीपनि है॥ २६ ॥ तब उस ने उसे छोड़ दिया और बुह बोली कि खानने के कारण तू रक्त- पातीपति है। २७। और परमेश्वर ने हारून को कहा कि बन में जाके भूसा से भिन्न बुह गया और उसे ईश्वर के पहाड़ पर मिला और उसे चूमा ॥ २८॥ और ईश्वर ने जो उसे भेजा था मूसा ने उस की सारी बातें और आश्चर्य ओ उम ने उसे आना किई थी हारून से कह सुनाये ॥ २६ तब मूसा और हारून गये और दूसराएल के संतानों के प्राचीनों को एकला किया। ३.। और जो सारी बातें परमेश्वर ने मसा को कही थौं हारून ने कहीं और लोगों के आगे मन्यक्ष अाश्चर्य किये। ३१ । तब लोग विश्वास लाये और सुनके कि परमेश्वर ने इसराएल के संमान को सुधि लिई और उन के दुख पर दृष्टि किई भुके और दंडवत किई।