पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/२०

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जीरियां उत्पन्न हुई ॥ २। तो ईश्वर के पत्रों ने उत्पत्ति क्योंकि ईश्वर ने उसे लेलिया॥ २५ । और जब मातूसिलह एक सो सलामी बरस का हुआ तब उससे लमक उत्पन्न हुआ॥ २६ । और लमक की उत्पत्ति के पीछे मतूसिलह सात सौ बयासी बरस जीआ और उसे बेटे बेटियां उत्पन्न हुई। २७। और मनमिलह की सारी घय नब सो उनहत्तर बरस की हुई और बुह मर गया ॥ २८। और लमक जब एक सो बयासी बरम का हुआ तब उस का एक बेटा उत्पन्न हुआ॥ २८ । और उस ने उम का नाम नह रकवा और कहा कि यह हमारे हाथों के परिश्रम और कार्य के विषय में जो एविधी के कारण से हैं जिस पर परमेश्वर ने स्राप दिया है हमें शांत देगा॥ ३० । और नूह की उत्पत्ति के पीके लमक पांच सौ पंचानवे बरस जीया और उसे बेटे बेटियां उत्पन्न हुई ॥ ३१ । और नमक की सारी बय सात नो सतहत्तर बरस की हुई और बुह मर गया ॥ ३२। और न ह जब पांच से बरम का श्रा तब नूह से सिम और हाम और याफन उत्पन्न हुए। ६ छठयां पर्च। पर यो हुआ कि जब मनुष्य प्रथिबी पर वड़ने लगे और उन से मनुष्य की पुत्रियों को देखा कि वे सुंदरी हैं और उन में से जिन्हें उन्हों ने चाहा उन्हें व्याहा॥ ३॥ ौर परमेश्वर ने कहा कि मेरा अात्मा मनस्य में उन के अपराध के कारण मदालों न्याय न करेगा बुह मांस है और उस के दिन एक सौबीस बरस के होंगे। ४। और उन दिनों में एथिवी पर दानव थे और उस के पीछे जब ईश्वर के पुत्र मनुष्यों की पुत्रियों से मिले तो उन से बालक उत्पन्न हुए जो वलबान हुए जो आगे से नामी थे ॥ ५। और ईश्वर ने देखा कि मनुष्य को दुष्टता पृथिवी पर बहुत हुई और उन के मन की चिंता और भावना प्रतिदिन केवल बुरी होती हैं ॥ ६ । तव मनुष्य को प्रथिवी पर उत्पन्न करने से परमेश्वर पछताया और उसे अति शोक हुना ॥ ७ । नव परमेश्वर ने कहा कि मनुष्य को जिसे मैं ने उत्पन्न किया मनुष्य से ले के पशु लो और रंगवैयों को और आकाश के पक्षियों को प्रथिवी पर से नष्ट करूंगा क्योंकि उन्हें बनाने से में पछताता हूं।