पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/२१६

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लेब्यव्यवस्था जाने वह ६ । याजकों में से हर एक पुरुष उम्स खावे वुह पवित्र स्थान में खाई अत्यंत पवित्र है॥ ७॥ जेसे पाप की भेट वैसे ही अपराध की भेट की एक ही व्यवस्था है जा याजक उमा प्रायश्चित्त करता है उसी को होगी। ८। और जो याजक किसो मनुष्य के होम की भेट चढ़ाता है से उसौ हाम को खाल उमी याजक की होगी जिसे उसने चढ़ाया॥ <। और समस्त भोजन की भेंट जो भट्टे में पकाई जावें और सब जो कड़ाही में अथवा तवे पर सो उसी याजक की होगी जो उसे चढ़ाता है। १०। और हर एक भोजन की भेट जो तेल से मिली हुई हो अथवा सूखी हो सो सब हारून के बटर के लिये ममान होगी॥ ११॥ और कुशल को भट के बलिदान जा बुह परमेश्वर के लिये चढ़ावे उस की यह रीति है ॥ १२ । यदि बुह अन्यबाद के लिये चढ़ाये तो उभ के साथ नेल से मिले हुए अखमौरी फुलके और अखमीरों तेल से चुपड़ी हुई और तेल में पकी हुई चोखे पिसान को पूरी धन्यबाद के लिये चढ़ावे ॥ १३। और फुलके से अधिक बुह खमीरी रोटी को अपनी भेंट धन्यबाद के बलिदान के और अपनी कुशल को भष्ट के साथ लावे ॥ १४ । और वुह समस्त नैवेद्य में से एक को परमेश्वर के आगे हिलाने की भेंट चढ़ावे और यह उस याजक का होगा जो कुशल की भेट के साहू केर हिड़कता है। १५। की भेंट और बलिदान का मांस जो धन्यवाद के लिये है उसे चढ़ाये जाने के दिन में खाया जावे और वुह उस में से बिहान लां कुछ न छोड़े ॥ १६ । परंतु यदि भेट का बलिदान मनातौ का अथवा उस के बांछित का हे नो वुह चढ़ाने के दिन खाया जाय और उबरे हुये से दूसरे दिन भी खाया जाय ॥ १७। परंतु बलिदान का उबरा हुआ मांस तीसरे दिन अाग से जला दिया जाय । २८। और यदि कुशल के बलिदान के मांस में से कुछ तीसरे दिन खाया लाय तो बुह ग्रहण न किया जायगा न भेट दायक के लिये लेखा किया जायगा चुह घिनित होगा जो पाणी उम में से खावे से अपने पाप को भोगेगा ॥ १६ । और बुह मांस जो किमी अशुद्ध बस्तु को छूये से खाया न जायगा परंतु नलाया जाये और मांस जो है से हर एक जो पवित्र हो से उस में से खावे ॥ २० । परंतु जो अशुद्ध माणौ और कुशल