पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/२३

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। पशु ८ पर्व को पुस्तक किई थी और परमेश्वर ने उस के पीछे बंद किया। १७। और बाढ़ का पानी चालीम दिन ताई एथिवी पर हुआ और पानी बढ़ गया और नाब को उभार लिया औरर बुह भूमि पर से ऊपर उठ गईः ॥ १८ । और जब पानी बढ़े चार एथिवी पर बहुताई से बढ़ गए तब नौका पानी के ऊपर उतराने लगी। १६ । और जब कि पानी एथिवी पर अत्यंत बढ़ गये तो मारे ऊंचे पहाड़ जो सारे आकाश के नीचे थे ढंप गये। २०। और दंपे हुए पहाड़ों पर पानी पदरह हाथ बढ़ गये। २१ । और सारे शरीर जो एथिवी पर चलते थे पंछी और दार और और भूमि पर के हर एक रंगवैये जंतु और हर एक मनुष्य मर गये॥ २२ । और सब जिन के नथुनों में जीवन का म्वास था और सब जोखी पर घे मर गये ॥ २३ । और हर एक जीबना जंनु जो पृथिवी पर था मनुष्य से लेके ढोर और कीड़े मकोड़े और आकाश के पंछियों लो नष्ट हुए केवल नूह और जो उस के साथ नौका में थे बच रहे॥ २४ । और पानी डेढ़ मो दिन ले एधिवी पर बढ़ते गये। साठवां पर्व । पर ईश्वर ने नूह को और हर एक जीवते जंतु को और सारे टोर को जो उस के संग नाब में ये स्मरण किया और ईश्वर ने प्रथिवी पर एक पवन बहाया और जल ठहर गये। २। और गहि- राब के सेने भी और आकाश के झरोखे बंद हो गये और नाकाश से मेंह घम मया ॥ ३ । और जल प्रथिवी पर से घटे चले जाते थे और डेढ़ सौ दिनों के बीते पर जल घट गये । ४। और सातवें मास की सत्तरह तिथि में नौका अरारात के पहाड़ों पर टिक गई ॥ ५। और जल दसवें मास लो घटते गये और दसवें माम के पहिले दिन पहाड़ी की चोटियां दिखाई दिई । ६ । और चालीस दिन के पीछ यूं हुअा की मूह ने अपने बनाये हुए नाव के भरोखे को खोला। ७1 और उस ने एक काग को उड़ा दिया और जब लो एथिवी पर के जल रुख न गये वह आया जाया करता था ॥ ८। फेर उम ने अपने पास से एक पंडुकी को छोड़ दिया जिम जाने कि पानी भूमि पर से घट गये अथया नहीं। जीर