पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/४१५

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को पुस्तक। २६ पर्ब) ४०७ हमारे संग खड़ा है और उस के साथ भी जो आज के दिन हमारे साथ नहीं है॥ १५ । क्योंकि तुम जानते हो कि हम मिस्र में क्यांकर बाम करते थे और क्योंकर उन लोगों के मध्य में से जिन में तुम रहते थे निकल गये॥ १६ । और तुम ने उन की लकड़ी और पत्थर और चांदी और सोने की घिनित मूनों को देखा है। मूनों को देखा है॥ १७॥ ऐसा न हो कि तुम्हों में कोई पुरुष अथवा स्त्री अथवा घराना अथवा गाठी ऐसी हो कि जिस का मन आज के दिन परमेश्वर हमारे ईश्वर से फिर जाय और इन जातियों की देवता की सेवा करे ऐसा न हो कि तुम्हारे बीच ऐसी जड़ हो जो विध की नाई कडुअा और नागदौना उपजावे ॥ १८। और यो हो कि जब बुह इस साप की बातें सुने तो वुह श्राप को अपने मन में आशीष द के कहे कि में चैन करूंगा यद्यपि अपने मन की भावना में चनं कि पियास में मतवालपन मिला। परमेश्वर उसे न छोड़ेगा परंतु उसी समय उस जन पर परमेश्वर का क्रोध भड़केगा और समस्त स्त्राप जो इस पुस्तक में लिखे हैं उस पर पड़ेंगे और परमेश्वर उस के नाम को वर्ग के तले से मिटा देगा॥ २०॥ और परमेम्बर बाचा के समस्त सापो के समान जो इस व्यवस्था की पुस्तक में लिखे हैं इसराएल की सारी गाष्टियों में से बुराई के लिये उस को अलग २१। यहां लो कि अवैया पीढ़ी जो तुम्हारे बालकों में से उठेगी और परदेशी जो दूर देश से अावेंगे उस देश की मरी और रोग को जो परमेश्वर ने उस पर धरे हैं देख के कहेंगे। २२। कि यह सारा देश गंधक और लोन से जन्न गया कि न बोया जाता न उपजता और न कुरु घास उगती है जैसे कि मदूम और अमरः और अदमः चार जिबी- आन उलट गये परमेश्वर ने उसे भी अपनी रिस से और अपने कोप से उलट दिया ।। २३ । अर्थात् समस्त जातिगण कहेंगे कि परमेश्वर ने इस देश पर ऐमा क्यों किया और इस महा कोप के तपन का क्या कारण है। २४ । तब लोग कहेगे इस लिये कि उन्हों ने परमेश्वर अपने पितरों के ईम्पर की उस बाचा को त्याग किया जा मिस देश से निकालने के समय उन से बांधी यी २५। क्योंकि उन्हों ने जाके भान अान देवता की सेवा और उन्हें दंडवत किई उन देवतों को जिन्हें वे न जानने थे और जिन्हें करेगा।