पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/४८

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उत्पत्ति [२२ पर्ब में किरिया खाई। ३२। मे। उन्हों ने बीअरमबत्र में नियम बांधा तव अबिमलिक और उस का प्रधान सेनापति फौकुन उटे और फिलिस्तीयों के देश में फिर गये। ३३ । तब उस ने बीअरसबत्र में कुंज लगाया और वहां सनातन के ईश्वर परमेश्वर का नाम लिया ॥ ३४ । और अबिरहाम फिलिस्ती के देश में बहुत दिन लो टिका ॥ २२ बाईसवां पर्व । न बातों के पीछे यूं था कि ईश्वर ने अबिरहाम की परीक्षा किई इ और उसे कहा हे अविरहाम बुह बोला कि देख दहाह। २। फिर उम ने कहा कि तू अपने बेटे को अपने एकलौते इज़हाक को जिसे त प्यार करता है ले और मारिः के देश में जा और वहाँ पहाडों में से एक पहाड़ पर जो मैं तुझे बताऊंगा उसे होम को भेंट के लिये चढ़ा॥ ३ । नब अविरहाम ने तड़के उठकर अपने गदहे पर काठी बांधी और अपने तरुणी में से दो को और अपने बेटे इजहाक को साथ लिया और होम की भेंट के लिये लकड़ियां चोरों और उठके जहां ईश्वर ने उसे आज्ञा किई थी तहां चला गया। ४। तीसरे दिन अबिरहाम ने अपनी आंखें ऊपर किई तो उस स्थान को दूर से देखा ॥ ५। तब अबिरहाम ने अपने तरुणे से कहा कि गदहे के साथ यहौं ठहरो और में इस लड़के के माथ वहां लो जाता है और सेवा करके फिर 'तुम्हारे पाम आयेंगे। ६। तब अबिरहाम ने होम की भेंट की लकड़ियां लेकर अपने बेटे इजहाक पर लादों और आग और छूरी अपने हाथ में लिई और दोनो साथ साथ गय ॥ ७॥ और इज हाक अपने पिता अबिरहाम से बोला कि हे पिता बुह बोला हे बेटे मैं यही हूं उस ने कहा कि देखिये श्राग और लकड़ियां तो हैं पर होम की भेंट के लिय भेड़ कहां है । ८। और अबिरहाग बोला कि हे बेटे ईश्वर होम की भेंट के लिय भेड़ आपही सिड्स करेगा से वे दोनों साथ माथ चले गये। । और उस स्थान में जहाँ ईश्वर ने कहा था आये तब अबिरहाम ने वहां एक बेदी बनाई और उन लकड़ियों को वहां चुना और अपने बेटे इजहाक का बांधके उस बेदी में लकड़ियों पर धरा॥ ५.। और अबिरहाम ने