पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५१०

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५०२ न्यायियों [१२ पच का होगा अथवा मैं उसे होम को भेंट के लिए चढ़ाऊंगा॥ ३२। तब इफताह अम्मून के संतान की ओर पार उतरा कि उन से लड़े और परमेश्वर ने उन्हें उस के हाथ में सैप दिया और अरायर से लेके मिनियत के पहुंचने लो बीम नगर और दाख की बारी के चौगान लो अति बड़ी मार से उन्हें भारा दूनी रीति से अम्मन के संतान इसराएल के संतानों के वश में हुए। हए॥ ३४ । और जब इफलाह मिमफा को अपने घर आया तब क्या देखता है उस की बेटी तबले बजाती और नाचती हुई उसे आगे लेने को निकली और वुह उस की एकलौती थी उसे छोड़ कोई बेटा बेटी न धौ ॥ ३५ । और यों हुआ कि जब उस ने उसे देखा तब अपने कपड़े फाड़े और बोला हाय हाय मेरी बेटी तू ने मुझे अति उदास किया तू उन में से एक है जो मुझे सताते हैं क्योंकि मैं ने तो परमेश्वर को बचन दिया है और हर नहीं सता॥ ३६ । नब उस ने उसे कहा कि हे मेरे पिता यदि तू ने ईश्वर को बचन दिया है तो जेर कुछ तेरे मंह से निकला सो मुझ से कीजिए क्योंकि परमेश्वर ने तेरे शत्रु अम्मन के संतान से तेरा पलटा लिया है। ३७। फिर उस ने अपने पिता से कहा कि मेरे लिये इतना कौजिए कि दो मास मुभी छोड़िये जिसमें मैं पहाड़ो में फिर और अपनी संगियों को लेके अपने कुत्रांरपन पर बिलाप करूं ॥ । और बुह बोला कि जा और उस ने उसे दो मास की छुट्टी दिई और वुह अपनी संगियों सहित गई और पहाड़ों पर अपने कुमारपन पर बिलाप किया ॥ ३६ । और दो मास के पोछ अपने पिता पास फिर आई और उस ने जैसी मनौती मानी थी वैसी ही उसो किई और युह पुरुष से अज्ञान रही और यह दूसराएल में विधि हुई। ४.सो दूसराएल की कन्या बरस बरस जिलिअदी इफताह की बेटी से बरस में चार दिन बात चीत करने को जाती थीं। १२ बारहवां पढ़। -स्व समय इफरायम के लोग एक8 होके उत्तर दिशा को गए और दफताह से कहा कि जब त अम्मन के संतान से युद्ध करने को पार उतरा तब हमें क्यों न बुलाया से अब हम तेरे घर को तुझ समेत जन्ता