पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५५१

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कौ पुस्तक । ५४३ हैं कि हमें और हमारे लोगों को घात करें। १२ । मेो उन्होंने भेज के फिलिस्तियों के प्रधानों को एकट्टे किया और कहा कि इराएल के ईश्वर की मंजूषा को जहां से वह आई वहीं फेर भेजो जिसने और हमारे लोगों के घात न करे क्योंकि मारे नगर में मारू उखड़ हुश्रा और परमेश्वर का हाथ उन पर भारी था॥ १२॥ और जो मर न गये से बबेमी से रोगी थे और नगर का बिलाप वर्गल पहुंचा था। हमें ४. ६ छठवा पब्बे ॥ - परमेश्वर की मंजूषा सान माम ले फिलिस्तियों के देश में थी॥ २। तब फिलिस्तियों ने याजको और दैवज्ञां को बुलाके पूछा कि परमेश्वर की मजधा से क्या करें हमें बताया कि हम किस रीति से उसे उम् के स्थान को भेनें ॥ ३। वे बोले कि यदि तुम दूसराएल के ईश्वर को मंजूघा को भेजते हो तो कूछी मन भजो परंतु किसी भांति से पाप को भेंट के साथ उसे फेर भेजो नब तुम चंगे होओगे और तुमें जान पड़ेगा कि उस का हाथ तुम से किस लिये नहीं उठता है। तब उन्हों ने पूछा कि बुह कौन सा पाप का बलिदान है जो हम उसे फर देखें वे बोले कि फिलिस्तौ प्रधानों की गिनती के समान पांच सोनाली बवे सौ और सोने के पांच मूम क्योंकि तम सभों पर और तुम्हारे प्रधानों पर एक ही मरी है। ५ । सेो तुम अपनी ववेसी की और मूसे की मूर्ति बनायो जो देश को नष्ट करते हैं और इसराएल के परमेश्वर की महिमा करो क्या जाने बुह तुम से और तुम्हारे देवने से और तुम्हारे देश से हाथ उठा लेवे ॥ ६ । तुम क्यों अपने मन को कठोर करते हो जैसा कि मिस्त्रियों ने और फिरजन ने अपने मन को कठोर किया था जब कि ईश्वर ने आश्चर्यित कायं उम में किये से क्या उन्हों ने उन्हें जाने न दिया और वे बिदा न हुए।। ७। अब तुम एक नई गाड़ी बनाओ और दो दधार गायें जो जा तले न आई, हों लेओ और उन गायों को माड़ी में जाता और उन के बछड़ों को घर में उन के पीछे रहने देर । ८। और परमेश्वर को मंजूषा ले के उस गाड़ी पर रक और सेने के पात्र जो पाप की भेंट के कारण देते हो एक मंजूषा में धर के उस की