पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५५०

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[५ पळ और ५४२ समूएल के पति चल बसे । २२। और वह बोली कि बिभव इसराएल से जाना रहा क्योंकि ईश्वर को मंजूषा लिई गई। ५ पांचवां पर्छ । पर फ़िलिस्ती परमेश्वर की मंजूषा को अबनअजर से लेके अशहूद को आये ॥ २। और जब फिलिस्ती परमेश्वर की मंजूषा को ले गये तब उन्हों ने उसे दागू न के मंदिर में पहुंचाया और दामून के पास रक्वा ॥ ३। और जब अशटूदी बिहान को तड़के उठे तो क्या देखते हैं कि दागून परमेश्वर की मंजूषा के श्रागे मूह के वल भूमि पर गिरा है से। उन्हों ने दागन को उठा के उस के स्थान पर फिर रक्खा ॥ 11 फिर जब वे तड़के विहान को उठे तब क्या देखते हैं कि दाग न परमेश्वर को मंजूषा के आगे मुंह के बल भूमि पर पड़ा है और दागून का सिर और दोनों हथेलियां कटी हुई. डेवढ़ी पर पड़ी हैं केवल दागन का घड़ रह गया था। ५। इस लिये दागुन के याजक और वे जो उस के मंदिर में जाने हैं दागून की डेवली पर आज ले पांव नहीं धरने ॥ ६ । परंतु परमेश्वर का हाथ अशटूदियों पर भारी पड़ा था और उस ने उन्हें नाश किया और अशदद को और उस के सिधानों को बबेमौ से मारा॥ । और जब अशदूदियों ने यह देखा तब बोले कि दूसराएल के ईश्वर की मंजूषा हमारे साथ न रहेगी क्योंकि उस का हाथ हम पर और हमारे देव दागन पर पड़ा है । ८। से। उन्होंने फिलिस्तियों के मारे प्रधानों को बुला भेजा और कहा कि हम इमराएल के ईश्वर की मंजूषा को क्या करें वे बोले कि आओ इस- राएल के ईश्वर की मंजूषा को गात को ले जावे से वे इसराएल के ईश्वर की मंजूषा को वहां ले गये॥ ८ । और उस के ले जाने के पीछे ऐसा हुआ कि परमेश्वर का हाथ अत्यंत नाश करने को उस नगर के विरोध में पड़ा और उस ने उस नगर के लोगों को कोटे से लेके बड़े से मारा और उन के गले में बसो का लोहू बहने लगा। । १० । इस लिये उन्हों ने ईश्वर को मंजूषा अकरून में पहुंचाई. तब अकरूनी चिलाके बोले कि वे इसराएल के ईश्वर को मंजूषा को इस लिये हम्में लाये