पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६३

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२७ पर्च] ५३ ३० । और यां और यत्रकब होगा। की परतक। मभु हो और तेरी मा के बेटे नेरे आगे झुके जो तुझे खापे सो नापित और जो तुझे आशीर्वाद देवे से आशीषित होवे ।। हुआ कि जे उंहों इजहावा यमक ब को आशीष दे चुका के अपने पिना इजहाक के आगे से बाहर जाते ही उसका भाई एसौ अपनी अहेर से फिरा ॥ ३१ । और उस ने भी खादित भोजन बनाया और अपने पिता पाम लाया और अपने पिता से कहा मेरे पिता उठिये और अपने बेटे का मृग नांस खाइये जिसने छाप का प्राण मम आशीष देवे॥ ३२ । उस के पिता दूज हाक ने उसे पूछा कि तू कौन है बोला कि मैं आप का बेटा श्राप का पहिलोठा एमी हं॥ ३३। तब इज हाक बड़ी कंपकंपी से कांपा और बोला बुह तो कौन था और कहाँ है जो मृग मांस अहेर करके मुझ पास लाया और मैं ने सब में से तेरे आने के अागे खाया है और उसे आशीष दिया है हां वुह वाशीषित ३४ । एमा अपने पिता की ये बातें मुनके बहुत चिल्लाया और फूट फूट के रोया और अपने पिता से कहा मुझे भी मुझे हे मेरे पिता आशीष दीजिये ॥ ३५ । और बुह बोला कि तेरा भाई छल से आया और तेरा आशीष ले गया॥ ३६ । तब उस ने कहा क्या वुह याकूब ठीक नहीं कहावना क्योंकि उस ने दोहराके मुझे अडंगा मारा उस ने मेरा जन्म यद ले लिया और देखो अब उस ने मेरा बाशीष लिया है और उस ने कहा क्या तू ने मेरे लिये कोई आशीष नहीं रख छोड़ा। ३७ । तब एज हाक ने एसा को उत्तर देके कहा कि देख मैं ने उसे नेरा प्रभु किया और उस के सारे भाइयों को उभ की सेवकाई में दिया और अन्न और दाख रम से उस का सहारा किया अब हे मेरे बेटे नेरे लिये मैं क्या करूं ॥ ३८। तव एसी ने अपने पिता से कहा हे पिता क्या आप पास एकही आशीष है है मेरे पिता मुझे भी मुझे आशीष दीजिये और एम चिना चिना रोया। ३६ । नव उस के पिता इज़हाक ने उत्तर दिया और उसे कहा कि देख भूमि की चिकनाई और ऊपर से आकाश की शाम में तेरा तब होगा । ४० । और तू अपने खड्ग से जीयेगा और अपने भाई की सेवा करेगा और यों होगा कि जब त राज्य पायेगा तो उम् का जत्रा अपने कांधे पर से तोड़ फेंकेगा ॥ ४१ ।