पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६४१

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१५ पबै को २ पुस्तक । ॥ रहा अविमलुम के तीन बेटे उत्पन्न हुए और एक बेटी जिस का नाम तमर था वुह बहुत सुंदर थी २८ । सेो अबिसलुम परे दो बरम यरूसलम में और राजा का मुंह न देखा ॥ २६ । इस लिये अविसलम ने अब को बुलवाया कि उसे राजा पास भेजे परंतु बुह न चाहना था कि उस पास आवे फिर उस ने दुहरा के बुलवाया तब भी वुह न आया । ३० । तब उस ने अपने सेवकों से कहा कि देखो यूअव का खेत मेरे खेत से लगा है और वहां उस का जव है सो जाओ और उम में आग लगायो नब अविसलुम के सेवकों ने खेत में आग लगाई ॥ ३१ । लब यूचब उठा और अबिमलुम के घर आया और उसने कहा कि तेरे सेवको ने मेरे खेत में क्यों भाग लगाई। ३२। तब अविसलुम ने यूअब को उत्तर दिया कि देख मैं ने तुझे कहला भेजा कि यहां आ कि मैं तुझे राजा पास भेज के कहूं कि मैं जसूर से क्यों यहां आया मेरे लिये तो वहीं रहना अच्छा था सो अव तू मुझे राजा का मुंह दिखा और यदि मुझ में अपराध होवे तेरे वुह मुझे मार डाले ॥ ३३ । नब अब ने राजा पास जाके यह कहा और उस ने अविसलुम को बुलाया सो वुह राजा पास आया और राजा के आगे बौधा गिरा और राजा ने अबिसलुम को चमा। १५ पंदरहवां पळ न बातों के पीछे ऐसा हुआ कि अविससुम ने अपने निये रथ और घोड़े और पचास मनुष्य अपने अागे दौड़ने का सिद्ध किया। और अबिसलम लड़ के उठा और फाटक की अलंग खड़ा हुआ और ये होता था कि जब कोई झगड़ा रखके राजा के न्याय के लिये आना था तब अबिसन्तम उसे बुलाके पता था कि त किस नगर का है उस ने कहा कि तेरा सेवक इमराएल की एक गोष्ठी में का है। अस्मिन्नुम ने उसे कहा कि देख तेरा पद भला और ठीक है परनु राजा की ओर से कोई नाता नहीं है। ४। और अविसलुम ने कहा हाय कि मैं में न्यायी है। ता कि जिस किसी का पद अथवा कारण होना पास आना और मैं उभ का न्याय करता। ५। और जब कोई रस पाम आता था कि उसे नमस्कार करे तो वुह हाथ बढ़ाके उसे पकड़. (A, B.S. ३। और मुझ 80