पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६४०

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समूएल [१४ पच्च मुझे डराया और आप की दासी ने कहा कि मैं आप राजा से कहंगी कदाचित राजा अपनी दासी की विनती सुनें ॥ १६। क्योंकि राजा अपनी दासी को उन पुरुष के हाथ से छुड़ाने को सुनेंगे जो मुझे और मेरे बेटे को ईश्वर के अधिकार से निकान्त के मार डाला चाहता है। १७। तब तेरी दासौ बोली कि मेरे मभु राजा की बात कुशल को होगी क्योंकि मेरे प्रभु राजा भला बुरा सन्ने में ईश्वर के दूत के समान हैं इस कारण परमेश्वर नेरा ईश्वर तेरे माथ होगा॥ १८। तब राजा ने उस स्त्री को कहा कि जो कुछ में तुझ से पूर्वं तू मुझ से मत छिया और स्त्री बोली कि मेरे प्रभु राजा कहिये ॥ १६ । तब राजा ने कहा कि क्या इन सब बातों में यूअव भी तेरे साथ नहीं उस स्त्री ने उत्तर दिया कि तेरे मरण को किरिया हे मेरे प्रभु राजा कोई दून बातों में से जो प्रभु राजा ने कहीं हैं दाहिने अथवा बायें जा नहीं सती क्योंकि तेरे सेवक यूनब ही ने मुझे यह कहा है और उसी ने यह सब बातें तेरी दासी के मुंह में डालीं ॥ २० । नेरे सेवक यू अब ने यह बात इस लिये किई, जिसने इस कहने का डौल बनावे और पृथिवी के समस्त ज्ञान में मेरा प्रभु ईश्वर के दूत के समान बुद्धिमान है॥ २१ । तब राजा ने यूअब को कहा कि देख मैं ने यह बात किई है से जा और उस तरुण अबिसलुन को फेर ला॥ यूअब भूमि पर धा गिरा और दंडवत किई और राजा का धन्य माना और यूअब बोला कि आज तेरे सेवक का निश्चय हुआ कि मैं ने तेरी दृष्टि में अनुग्रह पाया कि हे मेरे प्रभु राजा अाप ने अपने सेवक की विनती मानी॥ २३ । फिर यूअब उठ के जहर को गया और अबिमलुम को वरूमलम में लाया । २४। तब राजा ने कहा कि उसे कह कि अपने घर जाय और मेरा मूह न देखे से अबिसलुम अपने घर गया और राजा का मुंह न देखा ॥ २५ । परंतु समस्त इसराएल में कोई जन नबिसलुम के तुल्य सुंदर और प्रशंसा के योग्य न था ऋयोंकि तलबे से लेके चांदी ले उस में कोई पय न थी। २६ । और जब वुह अपने सिर के बाल मुंडाता था क्योंकि हर बरस के अंत में उस का यह बंधेज था इसलिये कि उस के बाल बहुत घने थे] नौल में दो सा मिशकाल राजा के बटखरे से होते थे॥ २७। और २२। सो