सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/१०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

(१०१)

आन्दोलन मचा था, और वहां के प्रमुख पत्रों में इस समुदाय, व्यभिचार की भारी निन्दा की गई थी। जिस पर वहाँ के, मन्दिर के महन्त ने ५० हज़ार रु॰ का मान हानि का दावा वहां के कुछ पत्र वालों पर कर दिया था, इस मुकदमें की ख़ूब धूम रही थी और गुसांईजी की खूब छीछा लेदर हुई थी। सन् १९१८ मे हमने जब व्यभिचार, नामक पुस्तक लिखा और उसमे हम ने धार्मिक व्यभिचारों की उन सब बातों का उल्लेख किया जिनका वर्णन इस अध्याय में किया गया है—साथ ही उस मुकदमें की कार्यवाही के उस समय के पत्रों के उद्धरण हम ने दिये थे, जिस पर बम्बई मन्दिर के महन्त ने प्रथम तो हमें मुकदमा चलाने की धमकी दी थी, पीछे उक्त पुस्तक का कापी राइट ख़रीद कर नष्ट कर देने की चेष्टा की थी।

कुछ दिन हुए स्वामी ब्लाकटानन्द ने जो प्रथम इसी सम्प्रदाय के थे—इस सम्प्रदाय को पोल ख़ोलते हुए ३ नाटक लिखे थे। जो लगभग २० वर्ष पूर्व हमने देखे थे, उस में भी बहुत सी बातों का भण्डा फोड़ किया गया था।

नाथद्वारा इस सम्प्रदाय का बड़ा भारी अड्डा है। और इस की सम्पत्ति भी करोड़ों रु॰ की है। हाल ही में वहां के भावी अधि कारी महन्त दामोदर लाल ने एक वेश्या से विवाह करके देश में काफी हलचल मचा दी है, महन्त दामोदर लाल ने इस कुकर्म को धर्म क्रान्ति के विचार से किया हुआ प्रमाणित करने की चेष्टा की थी—पर हमने स्वयं नाथद्वारे जाकर उसके सैनीक व्यभिचारीयों