पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/१०९

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कुछ पेशेवर ठग आमतौर से साधुओं का वेश धरे घूमा करते हैं। जो धर्म पाखण्ड के नाम पर बड़ी बड़ी कारवाइयाँ कर गुजरते हैं।

एक क़स्बे मे एक सर्राफ़ के पास दो साधू आए। सर्राफ साधुओं का बड़ा भक्त था। साधुओं की उसने ख़ूब सेवा सुश्रूषा की, साधुओं ने कहा—बच्चा हम तुझ पर महाप्रसन्न हैं। तू जितना हो सके सोना लेआ हम दूना बना देगे। सर्राफ ने कहा—महाराज, पहिले चमत्कार दिखाइये। उन्होंने एक तोला सोना लेकर आग में रख दिया। उसमे एक तोला तांबा रख दिया। सर्राफ तो उनकी सेवा चाकरी में लगा और साधुओं ने ताम्बे के स्थान पर चुपके से सफ़ाई से १ तोला सोना रख दिया। जब गलजाने पर निकाला तो दो तोला सोना था। लाला जी लोटन कबूतर हो गये और तुरन्त साठ तोले सोना साधुओं के सामने ला धरा। साधुओं ने बराबर तांबा मिला उसे आग में रख दिया। और सफाई से सोना निकाल लिया। इस के बाद निश्चिन्ताई से लाला से कहा—बच्चा, सुलफा और रबड़ी हमारे वास्ते लाओ। लाला इस काम मे लगे और साधु चुपचाप चम्पत हुए।

एक साधु महाराज हाथ से धातु नहीं छूते थे, परन्तु सोना बना दिया करते थे। उनके पास कोई भस्म थी उसे चुटकी भर कर तांबे पर डाला और तांबा सोना बना। एक बार एक सेठ जी चक्कर मे आ गये। महीनों सेवा को और अन्त मे साधु को प्रसन्न किया। उन्होंने वचन दिया हम तुझे सोना बना देंगे।