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पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/११२

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है? तब उसने वह दवा वैद्य जी को दी—उन्होंने वह गिरादी। इस पर उसने विगड़ कर कहा—वाह, यह आपने क्या किया? दवा—गिरा दी। तब वैद्यजी ने कहा, चिन्ता न करो, चलो—फिर भैरोंजी का आवाहन करे और औषध प्राप्त करें।

यह कह कर दोनो गये। लाला जी बड़े प्रभावित हुए। उनकी कुल्टा स्त्री ने उन पर और भी रंग चढ़ा दिया था। दूसरे दिन जब वैद्य जी फिर गये तो लाला ने बड़े उत्सुक होकर पूंछा—"कहो कल क्या देखा?"

उन्होंने कहा—भैरों ने साक्षात् दर्शन दिये, इस आदमी पर भैरों बाबा प्रसन्न हैं। और यह चाहे जिसको दर्शन करा सकता है।

लाला ने कहा—तब हमारा भी संकट काटना चाहिए। गरज उन दोनों पाखण्डियों ने लाला को उल्लू वना कर उस से १०।१२ हजार रु॰ झांसा। उनकी पत्नी इस काम में उनकी सहायक हुई। कई बार उन्होंने भैरों के दर्शन लाला जी को भी कराए। कुछ दिन व्यतीत होने पर भी जव लाला का रोग दूर न हुआ—उल्टा बढ़ता ही गया तो उन्होंने घबराकर कहा—अब क्या करना होगा। वैद्य जी ने अनुष्ठान के लिये ५०० रुपये और मांगे।

लाला के कोई सम्बन्धी आर्य समाजी थे। उन्हें इस बात फी कुछ सन्धि लग गई कि ये धूर्त लाला को ठग रहे हैं। उन्होंने पुलिस में इसकी इत्तला की—पुलिसने ५०० रु॰ के नोटों पर निशान करके उन्हें दिये कि जाफर वैद्य जी को दे दो। उन्होंने वैद्य जी को