पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/१११

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अनूप शहर में एक स्त्री के सन्तान नहीं होती थी। किसी स्याने ने कहा कि किसी आदमी का खून चाट ले, उसने किसी पड़ौसी के बच्चे का हाथ काट खाया और खून पी गई। बहुत लोग इकट्ठे हुए, मगर मामला रफा दफा हो गया।

कुछ दिन पूर्व दिल्ली में एक भारी मामला होगया था, एक प्रसिद्ध वैद्यराज के पड़ोस में एक धनी लाला जी रहते थे। उनकी सुन्दरी स्त्री पर इनकी दृष्टि थी। वैद्य जी की स्त्री कुटनी का काम करती थी, वह दूसरी स्त्रियो को फँसा २ कर उनके पास ले आती थी। इस स्त्री को भी उसने फांसा। अतः वैद्य जी और इस स्त्री ने मिल कर सेठ जी को ठगने का षड्यन्त्र रचा। सेठ जी बीमार रहते थे। एक बार उन्हें देखने को वैद्य जी बुलाये गये। एक आदमी पहिले ही से ठीक कर लिया गया था—वह थोड़ी ही देर बाद वहां पहुंच गया। वैद्य जी ने अनजान की तरह पूंछा-तुम कौन हो; और क्या चाहते हो? उसने कहा महाराज, मैं बड़ा दुखी था—मेरा रोग किसी भांति आराम ही न होता था। अन्त में मैंने आत्मघात करने की सोची—और एक दिन बहुत सवेरे मैं उठ कर लालक़िले की फसील पर चढ़ गया, और चाहा कि कूद कर जान देदूँ, कि भैरों जी प्रकट हुऐ और कहा—ठहर, जान मत दे, यह औषध ले, इससे आधी खा, आराम हो जायगा। मैंने वह आधी दवा खाई और खाते ही अच्छा हो गया।

वैद्य जी ने चमत्कृत होकर कहा—वह आधी दवा कहां