पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/१३६

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प्राचीन प्रथा के अनुसार चलने का फल था। भारतवर्ष में बच्चे जितनी बुरी हालत मे रहते हैं, संसार के और किसी देश में वे वैसे नहीं रहते भारतवर्ष में बच्चा सब से अभागा प्राणी है। न उसका कोई अलग स्थान होता है और न चित्त विनोद का कोई साधन। वह जब चाहता है सो जाता है। बच्चों की देख भाल का कोई ख़याल नहीं रखता। तुम और मैं इन बातों को भली भाँति जानते हैं। यह सच है कि ज़ाहिर में बच्चों को बहुत प्यार किया जाता है। पर बच्चे के कल्याण के लिये उस प्यार में कोई नियम नहीं है। ...बच्चा गन्दगी कीचड़ और धूल में रह कर बड़ा होता है। मेरा हमेशा से यह विचार था कि मेरा फिर से भारत में जन्म हो, पर अब अगर मेरे लिये ऐसा अवसर आवे तो मैं हिचकूँगा। क्योंकि अमेरिका और योरोप में बच्चे जैसे प्रसन्न रहते हैं उसका तुम को ख़्याल भी नहीं है। बचपन ही वास्तव में आनन्दित रहने का समय है। क्योकि बड़े होने पर हम उसकी याद किया करते हैं। यही अवस्था है जब बालक के भाव दृढ़ हो जाते हैं। आजकल भारत मे चारों तरफ जैसी निन्दनीय बातें फैली हुई हैं इन के बीच मे रह कर बच्चा कैसे खुश रह सकता है?"

कन्यायें सन्तान रूप कलंक हैं यह भावना हिन्दुओं की नीच प्रकृति की परिचायक है। राजपूत लोग घमण्ड से कहा करते हैं कि हम किसी को दामाद न बनावेंगे और इसीलिये वे जन्मते ही कन्याओं को मार डाला करते थे। परन्तु अब भी कुछ लोग ऐसा