पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/१४४

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जिन्हें इन पेशेवर गुनहगारो ने कल्पित करके झूठ और बेईमानी की दुकान खोली है।

हम आपको बता चुके हैं कि प्राचीन काल में आर्य लोग यज्ञ करते थे और वहीं उनका प्रधान धर्म चिह्न था। इसके बाद जब बौद्धो ने अपने उतुङ्ग काल में भारत की सीमाओं को पार करके चीन, तातार, यूनान और उन प्राचीन प्रदेशो में धर्मप्रचार के लिये भ्रमण किया जहाँ असंख्य भयानक देवताओं, जिनो, प्रेतो और भयानक अद्भुत शक्तिशाली जीवो का विश्वास प्रचलित था। वे मूर्त्तिपूजा की भावना को लेकर भारत में लौटे और लगभग इस से था छ ही पूर्व सिकन्दर के साथ जो यूनानी भारत में आये वे भी अपने संस्कार छोड़ गये। जिस के फल स्वरूप प्रथम बौद्धों में और बाद को हिन्दुओं में मूर्त्तिपूजा का प्रचार हो गया। यज्ञों के देवता मूर्त्तिमान बनकर बदल गये। वेद का 'रुद्र' जो वास्तव में वायु का नाम था 'गिरीश' या नीलकण्ठ बन गया। मण्डूक उपनिषद् में वर्णित अग्नि की सात जिह्वाएं काली कराली, सुलोहिता, सुधूमवर्णी आदि शिव की पत्नियाँ हो गईं। केनोपनिषद् की उमा हैमवती जिस ने इन्द्र को ब्रह्मज्ञान का उपदेश दिया था--शिव की पत्नी कल्पित की गई। शतपथ ब्राह्मण के असुरो को असुरोरने वाले विष्णु को भी महत्व मिल गया। जो वास्तव में सूर्य का नाम था। परन्तु इस काल तक भी देवकी पुत्र कृष्ण की देवताओं में गणना न थी। वह छान्दोग्य उपनिषद्पु त्रवल अंगिरस ऋषि का एक शिष्य बताया गया है।