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पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/१५२

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रक्षा का एक मात्र स्थान था। बौद्धों की रीति पर आज भी पुरी में जगन्नाथ जी की रथ यात्रा होती है। कलिंग राज्य में बौद्ध धर्म न था। बरार में बौद्ध हिन्दू दोनों समान थे। यहीं प्रसिद्ध सिद्ध नागार्जुन रहता था। आन्ध्र प्रदेश में उसने २० सङ्घाराम और ३० देव मन्दिर देखे थे। अधिकांश मठ उजड़ गये थे। मन्दिर और उनके पुजारी बढ़ गये थे, द्राविड़ देशमें उसने बौद्धों का भारी ज़ोर देखा था, यहां १०० सङ्घाराम और १० हजार भिक्षु थे। मलाबार में भी उसने बौद्धों और हिन्दुओं को समान देखा था। लंका वह नहीं गया पर वह लिखता है वहां १०० मठ और २० हजार भिक्षु हैं। महाराष्ट्र प्रदेश में उसने अनेक बड़े २ सङ्घाराम देखे, ऐजेन्टा की प्रसिद्ध गुफाएँ भी उसने देखी थी, यहां ७० फुट ऊँची बुद्ध की एक पत्थर की मूर्ति थी। जिस पर एक ही पत्थर का ७ मंजिला चंदवा था जो अधर खड़ा था। मालवे में उसने १०० सन्घाराम और १०० देव मन्दिर देखे थे। कच्छ गुजरात और सिन्ध में भी उसने सर्वत्र घटते हुऐ बौद्ध धर्म और बढ़ते हुए मूर्ति पूजक हिंदू धर्म को देखा था।

इन मन्दिरों में इनके पुजारियों ने कुछ ही शताब्दियो में अटूट सम्पदा इकट्ठी कर ली और समस्त हिन्दू जाति का धन इन मन्दिरों में एकत्र हो गया। भारत के सभी नगर इन मूर्ख पुजारियों से भर गये। सन् ६१२ ई॰ में जब मुहम्मद बिनकासिम ने दाहर को परास्त किया तब सिन्ध (हैदराबाद) के एक मन्दिर से उसे ४० डेगें ताम्बे की भरी हुईं मिली थीं जिन में १७२०० मन