पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/१५३

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सोना भरा था। इसके अतिरिक्त ६००० ठोस सोने की मूर्त्तियाँ थीं जिन में सब से बड़ी का वज़न ३० मन था। हीरा, पन्ना, मोती मानिक इतना था जो कई ऊँटों पर लादा गया था।

महमूद गजनवी ने ११ वीं शताब्दी के प्रारम्भ में नगरकोट के मन्दिर को लूटा और उस में से ७०० मन अशर्फ़ी और ७०० मन सोने चाँदी के बर्तन; ७४० मन सोना २००० मन चाँदी और २० मन हीरा मोती लूट में मिले थे। इसी साहसी योद्धा ने आगे बढ़ कर गुजरात का सोमनाथ का वह प्रसिद्ध मन्दिर लूटा था जिस में अनगिनत रत्नजटित ५६ खम्भे लगे थे और मूर्त्ति के ऊपर ४० मन वज़नी ठोस सोने की ज़ञ्जीर से घण्टा लटक रहा था। इस लूट की सम्पदा की गणना न थी।

आज भी यदि आँख के अन्धे हिन्दू आँख खोल कर देखें तो उन्हें अपनी कमाई का सब से बड़ा भाग मन्दिरों में सञ्चित मिलेगा। नाथद्वारा के मन्दिर की ही मैं अपने अनुभव की बात कहता हूँ। इस मन्दिर के लिये उदयपुर राज्य से २८ गाँव जागीर में मिले हैं। और उसका दैनिक ख़र्च १०००) रुपये का है आमदनी चढ़ावे की बेशुमार है। ठाकुर जी पर चढ़ावा अलग चढ़ता है, गुसांई जी पर अलग, उनकी स्त्री और बच्चों पर अलग। इस प्रकार करोड़ों रुपये के जवाहरात इस मन्दिर में सुरक्षित हैं। १०००) रुपये रोज़ाना का जो ख़र्चा होता है इस में से किसी भी दीन दुखिया को एक पाई नहीं मिलती न किसी का इस से उपकार होता है। यह रुपया सब भोग में ख़र्च होता है और वह