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पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/४७

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धार्मिक दृष्टि से दोनों प्राचीन जातियों के विचार विनिमय का एक जबर्दस्त कारण होगया। भारत ने भयानक कष्ट देने वाले देवताओं को उन लोगों से पहचाना और तन्त्र ग्रन्थों की सृष्टि की आगे चलकर तान्त्रिकों के उपद्रव देश भर में फैल गये। प्राचीन भारतीय देवताओं और आत्मवाद की छाया यूनान में अरस्तू लेगया। जिससे यूनान में तत्त्वदर्शन की बड़ी भारी उन्नति हुई और रोमन सभ्यता में भी उसका बड़ा भारी स्थान रहा।

परन्तु भारतवर्ष में तान्त्रिक लोगों ने अन्ध विश्वास की जड़ें पाताल तक फैला दीं। कापालिक लोग उस समय दर बदर फिरा करते थे, और मरघट में वे कुत्सित जीवन व्यतीत करते तथा उन्हें लोग अलौकिक शक्ति सम्पन्न आदमी समझते थे। पृथ्वीराज रासों में ऐसे तान्त्रिकों का और उनके दर बदर फिरने का बहुत ही ज़िक्र है।

परन्तु अन्धविश्वासों को तो सब से बड़ा सहारा योग के चमत्कार से मिला। आज भी लाखों मनुष्य योग की विभूतियों पर भारी श्रद्धा करते हैं। मैं दृढ़ता पूर्वक कहता हूं कि योग की विभूतियां और सिद्धियां बिलकुल असाध्य और अव्यवहार्य हैं। और मैं विश्वास नहीं करता कि कभी भी पृथ्वी पर कोई ऐसा मनुष्य हुआ होगा कि जो उन विभूतियों से जानकार होगा। मनुष्य का मच्छर होजाना, या पर्वताकार हो जाना, लोप हो जाना, आकाश में उड़ना, दूसरी योनियों में चला जाना, मर कर भी जी उठना बिलकुल गप्प, झूंठ, असम्भव और ढकोसला हैं।