पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/४६

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इन्हीं दिनो कुस्तुन्तुनिया के सम्राट ने एक बिशप को कुस्तुन्तुनिया के विषय का पद दिया। इसका नाम नेस्टर था। यह सन् ४२७ की बात है, उसने साहस पूर्वक मनुष्याकृति ईश्वर को मानने से इन्कार कर दिया—और अविनाशी निराकार ईश्वर का प्रचार करना प्रारम्भ किया। वह अरस्तू के सिद्धान्तों को अध्ययन कर चुका था। सिकन्दरिया के साइरससे उसका झगड़ा होगया, यह वही साइरस था जिसने हियेशिया को मार डाला था। परन्तु नेस्टर ने उसकी परवाह न की और वह धड़ल्ले से निराकार ईश्वर की सिद्धि पर व्याख्यान देने लगा। अन्त में कुस्तुन्तुनिया में विद्रोह फैल गया। यह इतना बढ़ा कि सम्राट को दखल देना पड़ा। उसने एक सभा बुलाई। जिसमें साइरस जा धमका, उसके साथ बहुत से गुण्डे थे—और उसने घूस देकर राज्य कर्मचारियों को मिला लिया था। यहाँ तक सम्राट की बहिन भी उसी के पक्ष में थी। वह स्वयं ही सभापति बन गया और सीरिया के धर्माध्यक्षों के पहुँचने के पूर्व ही उसने राजाज्ञा सुना दी। नेस्टर का उत्तर सुनने से पूर्व ही उसे दण्ड दे दिया गया। सीरिया के धर्माध्यक्षों ने बहुत विरोध किया। वहाँ दंगा भी होगया और बहुत कुछ रक्तपात हुआ। अन्त में नेस्टर को देश निकाला दिया गया, और उसे जीवन भर कष्ट दिया गया। उसके मरने पर यह मशहूर किया गया कि उसकी जीभ में कीड़े पड़ गये थे। चूंकि उसने ईश्वर की निन्दा की थी। सिन्धु नदी को पार करके सिकन्दर का भारत में घुस आना