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पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/६

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पांडवों के साथ कौरवों के पक्ष में युद्ध किया, धर्म ही के कारण अर्जुन ने भाइयों और सम्बन्धियो के खून से धरती को रङ्गा, धर्म ही के कारण भीष्म आजन्म कुंवारे रहे, धर्म ही के कारण कुरुओं की पत्नियो ने पति से भिन्न पुरुषो से सहवास करके सन्तान उत्पन्न कीं।

धर्म ही के कारण राम ने राज्य त्याग वनोवास लिया, धर्म ही के कारण दशरथ ने रामको वनोवास दिया, धर्म ही के कारण रामने सीता को त्यागा, शूद्र तपस्वी को मारा, विभीषण को राज्य दिया।

धर्म ही के कारण राजा हरिश्चन्द्र राज्य पाट छोड़ भंगी के नौकर हुए, धर्म ही के कारण बलि ठगे गये, धर्म ही के कारण कर्ण को अपने कुण्डल और कवच देने पड़े।

धर्म के कारण राजपूतों ने सिर कटाये, उनकी स्त्रियो ने अपने स्वर्ण शरीर भस्म किये, रक्त की नदी बही। धर्म ही के कारण शंकर और कुमारिल ने, दयानन्द और चैतन्य ने, कठोर जीवन व्यतीत किये।

आज धर्म के लिये हमारे घरों मे तीन करोड़ विधवाऐं चुपचाप आंसू पीकर जी रही हैं। ७ करोड़ अछूत कीड़े मकोड़े बने हुए हैं। धर्म ही के कारण पाखण्डी, घमण्डी और गवर्गण्ड ब्राह्मण सर्व श्रेष्ठ बने हुए हैं। धर्म ही के कारण पत्थरों की भद्दी और बेहूदी अश्लील मूर्तियाँ तक पूज्यनीय बनी हुई हैं। धर्म ही के कारण पत्थर को परमेश्वर कहने वाले पेशेवर गुनहगार पुजारी